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________________ प्रायश्चित्ताधिकारः। के पाठ का यहां सङ्कोच नहीं किया है। इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि आनन्द श्रावक को उत्तर देते समय गोतम स्वामी चौदह पूर्व और चार ज्ञानके धनी नहीं थे अतः गोतम स्वामीके दृष्टांतसे भगवान महावीर स्वामीको चूका हुआ बताना मिथ्या है। (बोल ८ वां समाप्त) (प्रेरक) भ्रमविध्वंसनकार भ्रमविध्वंसन पृष्ठ २१३ पर दशवैकालिक सूत्रकी गाथा लिख कर उसकी समालोचना करते हुए लिखते हैं “अथ इहां कयो-दृष्टिवादरोधणी पिण वचनमें खलाय जाय तो और साधुने हसनो नहीं। ए दृष्टिवादरो जाणं चूके तिग में पिण कषाय कुशील नियंठो छै” (भ्र० पृ० २१३) इसका क्या समाधान ? (प्ररूपक) - भ्रमविध्वंसनकारने दशवैकालिक सूत्रकी गाथाका अशुद्ध अर्थ किया है इसलिये वह गाथा लिखकर उसका शुद्ध अर्थ किया जाता है आयार पन्नत्तिधरं दिठिवाय महिज्जगं वायविक्खलियं नचा नतं उवहसे मुणी" (दशवैकालिक अ०८ गाथा ५०) (टीका) ___ 'आयार' त्ति सुत्रम् । आचार प्रज्ञप्तिधर मिति आचार धरः स्त्रीलिंगादीनि जानाति प्रज्ञप्तिधर स्तान्येव सविशेषाणीत्येवं भूतं । तथा दृष्टिवाद मधीयानं प्रकृति प्रत्यय लोपागम वर्ण विकार काल कारक वेदिनं वाग्विस्खलितं ज्ञात्वा विविध मनेकैः प्रकारैलिङ्ग भेदादिभिः स्खलितं विज्ञाय नत माचारादि धर मुपहसेन्मुनिः अहोनु खल्वाचारादिधरस्यवाचि कौशलमित्येवम् इहच दृष्टिवाइ मधीयान मित्युक्त मत इदं गम्यतेनाधीत दृष्टिवादं तस्य ज्ञानाप्रमादातिशयतःस्खलनासंभवात् । यद्यवं भूतस्यापि स्खलितं भवति नचैनमुपहसे दित्युपदेशः ततोऽन्यस्य सुतरां भवतीति नासौ हसितव्य इति सुत्रार्थः ।" अर्थ: जो स्त्रीलिङ्ग आदिको जानता है उसे आचारधर कहते हैं और जो विशिष्ट रूपसे स्त्रीलिङ्ग आदि जानता है उसे प्रज्ञप्तिधर कहते हैं । जो मुनि, आचारधर और प्रशप्तिधर हैं तथा दृष्टिवादका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034599
Book TitleSaddharm Mandanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherTansukhdas Fusraj Duggad
Publication Year1932
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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