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अथ लब्ध्यधिकारः।
(प्रेरक)
भ्रमविध्वंसन कार कहते हैं कि भगवान. महावीर स्वामीने छद्मस्थपनेमें शीतल लेश्याको प्रकट करके गोशालककी प्राणरक्षा की थी इसमें भगवान को जघन्य तीन और उत्कृष्ट पांच क्रियाए लगी थी क्योंकि पन्नावणा पद ३६ में तेजः समुद्घात करनेसे जघन्य तीन और उत्कृष्ट पांच क्रिया लगना बतलाया है। शीतल लेश्या भी तेजो लेश्या ही है इसलिये उसमें भी तेजः समुद्घात होता है अत: शीतल लेश्याको प्रकट करके भगवान ने जो गोशालक की प्रागरक्षा की थी उसमें उनको जघन्य तोन और उत्कृष्ट पांच क्रियायें लगीं।
इसका क्या समाधान ? (प्ररूपक)
तेजः समधात करनेसे जघन्य तीन और उत्कृष्ट पांच क्रियाओंका लगना शास्त्र में कहा है परन्तु तेजः समुद्घात उष्ण तेजोलेश्याके प्रकट करनेमें ही होता है शीतल लेश्याके प्रकट करने में नहीं होता।
भगवती शतक १५ उद्देशा १ में उष्ग तेजोलेश्याके प्रकट करनेमें तेजका समुदूधात होना बतलाया है परन्तु शीतल लेश्या के प्रकट करने में नहीं कहा है वह पाठ यह है:__ "तएणं से गोशाले मंखलि पुत्ते वेसियायणं वालतवस्सिं पासइ पासइत्ता ममं अंतिआओ सणियं पच्चोसक्कइ पच्चोसकइत्ता जेणेव वेसियायणे बालतपस्वी तेणेव उवागच्छइ उवागच्छइत्ता वेसियायणं वालतवस्सिं एवं वयासो-किं भवं मुणी मुणोए उदाहु जुया सेना संत्थरए ? तएणं से वेसियायणे बालतवस्ती गोसालस्स मंखलि पुत्तस्स एवम नो आढाइ नो परिजाणइ तुसिणोए संचिट्टइ। तएणं से गोसाले मंखलिपुत्ते वेसियायणं चालतवस्सिं दोषि एवं वयासीकिं भवं मुणो मुणोए जावसेन्जायरए। तएणं से वेसियायणे वाल
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