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बोल १८ वां पृष्ठ २४२ से २४४ तक दशवकालिक अध्ययन ७ गाथा ५१ में वायु आदि सात बातोंके होने वा न होनेकी प्रार्थना करना साधुको अपने स्वार्थके लिये वर्जित की गई है क्योंकि इससे प्रागियोंका अनिष्ट भी होता है।
बोल १९ वा पृष्ठ २४५ से २४७ तक ... ठाणाङ्ग ठाणा चारकी चौभंगीमें जो अपनी ही रक्षा करता है. दूसरेकी नहीं करता उसे प्रत्येक बुद्ध, जिनकल्पी और निर्दय कहा है। स्थविर कल्पीको अपनी और दूसरेकी दोनोंकी रक्षा करने वाला बताया है।
बोल २० वां पृष्ठ २४७ से पृष्ठ २५० तक जैसे अपना जेवर उतार कर साधुको दर्शन करने वाली स्त्री धार्मिक है उसी तरह जेवर उतार कर मरते जीवकी रक्षा करने वाली स्त्री भी धार्मिक है।
बोल २१ वां पृष्ठ २५० से २५२ तक अन्य यूथक और गृहस्थ रास्तामें कदाचित् किसी पशुका घात करे अथवा वे चोर आदिसे लूट लिये जायं इस लिये साधु मार्ग नहीं बताते, अनुकम्पाको साक्य जान कर नहीं।
बोल २२ वां पृष्ट २५२ से २५४ तक ठाणाङ्ग ठाणा ३ उद्देशा ४ में जीव रक्षा करनेका निषेध नहीं किया है परन्तु अनुकूल या प्रतिकूल उपसर्ग करने वालेको धर्मोपदेश देकर समझाना या उसकी उपेक्षा करना अथवा वहांसे अन्यत्र चला जाना कहा है।
बोल २३ वां पृष्ठ २५४ से २५५ तक अपने स्वार्थके लिये किसी जीवको सतानेके भावसे भय देना निशीथ सूत्रमें वर्जित किया है, आत्म रक्षा या पर रक्षा के लिये नासमझ प्राणीको भय दिखाकर हटा देना वर्जित नहीं है। .
बोल २४ व पृष्ठ २५५ से २५७ हक निशीथ सूत्रमें भूति कर्म करने तथा मंत्र आदि करनेका निषेध है अपनी कल्प मर्यादाके अनुसार मरते पाणी की प्रागरक्षा करने का निषेध नहीं है।
बोल २५ वां पृष्ठ २५७ से २६१ तक . अपराधी प्राणीको मारनेके लिये क्रोध करके दौड़नेसे कुलणी प्रियका व्रत और पौषध नष्ट हुमा था माताकी रक्षाके भाव आनेसे नहीं।
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