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अनुकम्पाधिकारः ।
"वीरो सिंगारो अब्भुओ रोद्दो होइ बोद्धव्वो । वेलणओ वोभच्छो हासो को पसंतो अ" (अनुयोग द्वार सूत्र )
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अर्थ :
नौ प्रकारके काव्य रस होते हैं वे ये हैं- (१) वीर (२) श्रृंगार (३) अद्भुव ( ४ ) रौद्र (५) ब्रीडनक ( ६ ) वीभत्स (७) हास्य (८) करुण (९) प्रशान्त ।
यहां करुण नामक एक रस बताया गया है उसकी उत्पत्तिका कारण भी इसी tre मूलपाठ में कहा है । वह पाठ यह है :
"पिय विपयोग बंध वह वाहि विणिवाय सम्भमुत्पन्नो । सोइय विविध अपम्हाण रुग्ण लिंगो रसो वरुणो" करुणो रसो जहा"पजज्ञाय किलामिअयं वाहागयपच्युअच्छियं वसो । तरसवियोगे पुत्तिय दुब्बलयंते मुह जायं"
( अनु० गाथा १६/१७ )
अर्थ :
प्रिय साय वियोग होने से तथा वन्धन वध, व्याधि, पुत्रादि मरण और पर राष्ट्रके भय होनेसे कहा रस उत्पन्न होता है । चिन्ता करना विलाप करना उदास होना सेवी होना इसके लक्षण हैं। इसके उक्षहरण की गाथाका यह अर्थ है
प्रिय वियोग से दुःखित बालासे कोई बुद्धा स्त्री कहती है कि हे पुत्रि ! अपने प्रियकी अत्यन्त चिन्ता करनेसे तुम्हारा मुख खिन्न हो गया है और अविरल अश्रु धारासे तुम्हारी आखें सदा भरी रहती हैं।
यहां प्रियके वियोग से करुण रसकी उत्पत्ति क्ता कर प्रियके कियोनसे अत्यन्त दुःखित बालाका उदाहरण दिया है इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि रयगा देवीके वियोग से जिन ऋषिके हृदय में करुण रस उत्पन्न हुआ था अनुकम्पा उत्पन्न नहीं हुई थी । यतः रयणा देवीके ऊपर जिन ऋषिके करुण रसको अनुकम्पा कायम करके मनुकम्पाको सावद्य बताना अज्ञानियों का कार्य्य है ।
बोल ३४ व
( प्रेरक )
भ्रम विध्वंसन कार भ्रम विध्वंसन पृष्ठ १७५ के ऊपर राज प्रहनीय सूत्रका मूल पाठ लिख कर उसकी समालोचना करते हुए लिखते हैं :
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