________________
अनुकम्पाधिकारः।
कोई कारण न था किन्तु प्रियाके वियोगसे जो करुण नामक एक रस उत्पन्न होता है उसकी वहां सामग्री पूर्णरूपसे मौजूद थी इसलिये रयणा देवीके प्रति जिन ऋषिका करुण रस ही उत्पन्न हुआ था अनुकम्पा नहीं अतः उक्त पाठमें आया हुआ "कलुण" शब्द करुणरसका ही वोधक है अनुकम्पाका नहीं।
ज्ञाता सूत्रके मूल पाठमें साफ साफ लिखा है कि रयणा देवीके विचित्र हाव भाव मौर कटाक्ष तथा सुरत सुखको स्मरण करके तथा उसके मनोहर शब्द और भूषणोंकी मधुर ध्वनि सुन कर जिन ऋषिके हृदयमें करुण भाव उत्पन्न हुआ था इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि जिन ऋषिका रयणा देवीके ऊपर करुण रस उत्पन्न हुआ था अनुकम्पा नहीं क्योंकि अपनी प्रियाके हाव भाव कटाक्ष और सुरत सुखके स्मरण करनेसे और उसके मनोहर वाक्य तथा भूषणोंकी ध्वनि सुननेसे करुण रस ही उत्पन्न होता है अनुकम्पा नहीं उत्पन्न होती है। वह ज्ञाता सूत्रका पाठ यह है :
"ततेणं से जिण रक्खिए चलमणे तेणेव भूसणरवेणं कण्णसुह मनोहरेणं तेहिंय सप्पणय सरल महुर भासिएहिं संजायविउलराए रयण देवीस्स देवयाए तोसे सुन्दर थण जहण वयण कर चरण नयन लावण्णरूप जोवण सिरींचदिव्वं सरभस उवाहियाई जाति विव्वोय विलसिताणिय विहसिय सकडक्खदिट्ठी निस्ससिय मलिय उपललिय ठियगमण पणयखिज्जिय पासादियाणिय सरमाणे राग मोहियमह अवसे कम्मवसगए अवयकूखति मग्गतो सविलियं । ततेणं जिणरक्खियं समुप्पन्नकलुण भावं मच्चुगल्लत्थल्लणोल्लियमई अवयक्वंतं तहेव जक्खेय सेलए जाणिउण सणिणं सणियं उब्धिहति नियग पिटाहिं विगयसत्यं । ततेणं सा रयण दीव देवता निस्संसा कलुणं जिण रक्सियं सकलुसा सेलग पिट्टाहिं उवयंतं दास ! मओसोत्ति जम्पमाणो अप्पत्तं सागर सलिलं गेण्हिय वाहाहि आरसंतं उड्ढं उब्विहति अंवर तले ओवयमाणंच मंडलग्गेणं पडिच्छित्ता नीलुप्पणधवल अयसिप्पगासेण असिवरेण खडाखडिं करेति"
(ज्ञाता अ०९)
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com