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- अनुकम्पाधिकारः।
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इसका क्या समाधान ? (प्ररूपक)
हरिण गमेसी देवताने अनुकम्पा करके छः बालकोंके प्राण बचाये थे इस अनुकम्पाको सावध कहना अज्ञान है। वे छः ही लड़के चरम शरीरी थे और वे दीक्षा लेकर मोझ गये । यदि हरिण गमेशो उनकी रक्षा नहीं करता तो वे किस तरह बंचते और दीक्षा धारण करके किस प्रकार मोक्ष पाते ? इसलिये हरिण गमेशीने जो बालकों पर अनुकम्पा करके उनके प्राण बचाये थे और सुलसाकी दुःख निवृत्ति की थी उसे सावद्य बताना सर्वथा मिथ्या है।
___उन बालकोंकी रक्षा करने के लिये जो देवताने आने जानेकी क्रिया की थी उस क्रियाका नाम लेकर अनुकम्पाको सावध बताना भी अज्ञान है। आने जानेकी क्रिया दूसरी है और अनुकम्पाका परिणाम दूसरा है अत: आने जानेके कारण अनुकम्पा सावद्य नहीं हो सकती। तीर्थंकरों की वन्दना करनेके लिये देवता लोग आते जाते हैं परन्तु आने जाने से तीर्थंकर को वन्दना सावद्य नहीं होती क्योंकि आने जानेको क्रिया पृथक् है और वन्दना पृथक् है उसो तरह आने जानेकी क्रिया दूसरी है और अनुकम्पा दूसरी है इसलिये आने जाने की क्रियाके सावध होने पर भी अनुकम्पा सावद्य नहीं है। यदि कोई आने जाने की क्रियाके सावध होनेसे अनुकम्पाको सावध माने तो उसे आने जानेके सावध होनेसे तीर्थंकर की वन्दनाको भी सावध कहना चाहिये । परन्तु आने जानेसे यदि तीर्थकरकी वन्दना सावध नहीं होती तो उसो तरह आने जानेसे अनुकम्पा भी सावद्य नहीं हो सकती। हरिण गमेशी की अनुकम्पा का यह फल हुआ कि वे छः ही लड़के कंस के भयसे बच गये । अतः हरिण गमेशीको अनुकम्पाको सावध कहना अज्ञान का परिणाम है।
(बोल २९ वां) (प्रेरक)
भ्रमविध्वंसनकार भ्रमविध्वंसन पृष्ठ १६८ पर अन्तर्गड सूत्रका मूलपाठ लिख कर उसकी समालोचना करते हुए लिखते हैं
"अथ ईहां कृष्णजी डोकरानी अनुकम्पा करी हस्तिस्कंध बैठा ईट उपाडी तिणरे घरे मूको ए अनुकम्पा आज्ञामें के आज्ञा बाहिरे सावध छै के निरवद्य छै" (भ्र० पृ० १६९)
__ इसका क्या समाधान ?
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