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________________ अनुकम्पाधिकारः। २५९ (टोकार्थ) ___ चुलणी प्रिय श्रावकका स्थूल प्राणातिपात विरमण ब्रत भावसे नष्ट हो गया क्योंकि वह क्रोध करके हिंसकको मारनेके लिये दौड़ा था। व्रतमें अपराधी प्राणी को भी मारनेका त्याग होता है। उत्तर गुण-क्रोध नहीं करने का जो अभिग्रह था वह क्रोध करनेसे नष्ट हो गया और अप्रयत्न पूर्वक दौड़नेसे उसका अव्यापार पोषध नष्ट हो गया" यह टीकाका अर्थ है। ___यहां टीकाकारने व्रत नियम और पोषध भंगका कारण बतलाते हुए यह स्पष्ट लिखा है कि "हिंसक पर क्रोध करके मारणार्थ दौड़नेसे चुलगी पियके व्रत नियम और पोषध नष्ट हुए थे" मातृरक्षाका भाव आनेसे व्रत नियम और पोषध भङ्ग होना नहीं कहा है अतः चुलणी प्रियके हृदयमें मातृरक्षाके भाव आनेसे और मातृ रक्षार्थ प्रवृत्त होने से उसके वा नियम और पोषध का भङ्ग बताना कपूतों का कार्य समझना चाहिये। इसी तरह भीषगजीने मूढ मतियोंको बहकानेके लिये माताकी अनुकम्पा करनेसे चुलगी प्रियका व्रत भङ्ग होना कहा है। उन्होंने लिखा है: ... "इम सुणने चुलगी पिया चल गयो, माने राखग रो करे उपाय रे । ओतो पुरुष अनार्य कहे जिसो, झाल राखूज्यों न करे घातरे । ओतो भद्रा बंचावण ऊठियो, इणरे थामो आयो हाथरे। अनुकम्पा आणी जननी तगी तो भांग्या ब्रतरे नेमरे । देखो मोह अनुकम्पा एहवी, तिणमें धर्म कहीजे केमरे" (अनुकम्पा विचार ढाल ७ कडी ३५) इनके कहनेका भाव यह है कि किसी मरते प्राणीकी प्राणरक्षार्थ अनुकम्पा करना मोह अनुकम्पा है चुलगी प्रियने माताकी रक्षाके लिये अनुकम्पा की थी इसीसे उसका व्रत भङ्ग हुआ क्योंकि वह मोह अनुकम्पा थी। इनकी यह प्ररुपणा शास्त्र विरुद्ध है। टीकाके प्रमाणसे भी पहले बतला दिया गया है कि क्रोधित होकर हिंसकके मारणार्थ दौड़नेसे चुलणी प्रियका व्रत नष्ट हुआ था माताकी अनुकम्पासे नहीं क्योंकि व्रत पौषध के समय श्रावकको हिंसाका त्याग होता है अनुकम्पाका त्याग नहीं होता अतः हिंसाके भाव आनेसे ही व्रत भङ्ग हो सकता है अनुकम्पाके भाव आनेसे नहीं। भोषगजी ने सामायक और पोषधके समय अग्नि सादिका भय होने पर जयणाके साथ निकल जाने की आज्ञा दी है। जैसे कि उन्होंने लिखा है: "लाय सादिकरा भयथकी, जयणासूनिसर आयजी । राख्या ते द्रव्य ले जावता सामाइरो भंगनथायजी । पोषाने सामायक व्रतना सरीखा छै पच्चक्खाणजी। पोषाने सामायक व्रतने यहां पोषामें सरीखा छै आगारजी" (श्रावक धर्म विचार नवम व्रतकी ढाल) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034599
Book TitleSaddharm Mandanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherTansukhdas Fusraj Duggad
Publication Year1932
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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