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अनुकम्पाधिकारः।
२३९ करते हुए लिखते हैं-" अथ अठे इम कयो मिथिला नगरी बलती देख नमिराज ऋषि साहमो न जोयो वली कह्यो म्हारो वाहलो दुवाहलो एकही नहीं, रागद्वेष अकरवा मांटे तो साधु मिनकियादिकरे लारे पड़ने उदुरादिक जीवाने बंचावे ते शुद्ध के अशुद्ध असंतिरा शरीरनी जाब्ता करे ते धर्म के अधर्म" (भू० पृ० १४५) (प्ररूपक)
नमिराज ऋषिका दाखला देकर मरते जीवकी रक्षा करनेमें पाप कहना अज्ञान है। नामिराज ऋषि प्रत्येकबुद्ध साधु थे प्रत्येक बुद्ध साधुओंका आचार स्थविर कल्प वालोंसे कितनेही अंशोंमें भिन्न होता है। वे किसी मरते प्राणीकी प्राणरक्षा नहीं करते शिष्य भी नहीं करते और अहार पानी लाकर किसी साधुका व्यावच भी नहीं करते वे संघके अन्दर न रहकर अकेला रहते हैं जीतमलजीनेभी पडि माधारी साधुके विषयमें यह यह लिखा है:-"जे पडिमा धारी किणहीने संथारो पिण पच खावे नहीं कोईने दीक्षा देवे नहीं श्रावकरा व्रत आदरावे नहीं उपदेश देवे नहीं। पडिमाधारी धर्मोपदेशकादिक कोईने देवे नहीं एतो एकान्त आपरोइज उद्धार करवाने उठ्या छै । तो पोते किणही जीवने हणे. नहीं एतो. आपरी अनुकम्पा करे पिण परनी न करे। जिम ठाणाङ्ग चौथे ठाणे उद्देशा ४ कह्यो "आयाणु कम्पए नाम मेगे नो परानु कम्पए" आत्मानीज कनुकम्पा करे पिण परनी न करे ते जिन कल्पी आदिक। इहां पिण जिन कल्पिक आदि कह्यो ते आदिक शब्दमें तो पडिमाधारी पिण आया ते आपरीज अनुकम्पा करे पिण परनी न करे तो जीवने नहणे ते आरीज अनुकम्पा छै" यह लिखकर जीतमलजीने पहिमाधारी साधुको अपने पर अनुकम्पा करनेवाला और दूसरे पर नहीं करनेवाला बतलाया है और इसमें प्रमाण देनेके लिये ठाणाङ्ग सूत्र ठाणा चौथेका मूल पाठ लिखा है। उस मूलपाठमें जिन कल्पी आदिक शब्द नहीं है परन्तु उसकी टीकामें लिखा है कि अपने पर अनुकम्पा करनेवाले और दूसरे पर अनुकम्पा नहीं करनेवाले । तीन प्रकारके जीव होते हैं (१) प्रत्येक बुद्ध साधु, (२) जिन कल्पी (३) और परोपकार बुद्धि रहित निर्दय । इस टीकाके अनुसार प्रत्येक बुद्ध साधु दूसरेकी अनुकम्पा नहीं करते यह बात सर्वमान्य है और जीतमलजीको भी स्वीकृत है ऐसी दशामें प्रत्येक बुद्ध साधु नमिराज ऋषिका उदाहरण देकर स्थविर कल्पीको जीव रक्षा करने में पाप बतलाना कितना महान अज्ञान है यह बुद्धिमानोंको देखना चाहिए। प्रत्येक बुद्ध अपनी ही अनुकम्पा करते हैं दूसरेकी नहीं और स्थविर कल्पी अपनी तथादूसरेकी दोनोंकी अनुकम्पा करते हैं फिर प्रत्येक बुद्धके उदाहरणसे स्थविर कल्पीको जीवरक्षा करनेमें पाप कैसे कहा जा सकता है ?। प्रत्येक बुद्धका कल्प दूसरा है और स्थविर
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