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________________ अनुकम्पाधिकारः। २३५ अर्थः अर्थात् वीतराग भाषित धमका आचरण करने वाला संशयरहित, ज्ञान दर्शन सम्पन्न उत्तम तपस्वी साधु प्रासक आहारसे अपना जीवन निर्वाह करे और संयमके पालनमें सदा वत्तचित्त रहे, तथा सब प्राणियों को आत्म तुल्य देखता हुआ आस्रव का सेवन नहीं करे एवं असंयम जीधन (हिंसा के साथ जीवन) और परिग्रह रूप संचय की इच्छा नहीं करे। यह इस गाथा का अर्थ है। . इस गाथामें कहा है कि "साधु अपने समान सब प्राणियोंको देखे" अतः अपने समान सब प्राणियोंको देखना जब साधुका कर्तव्य है तो जिस प्रकार साधु अपनी रक्षा करनेमें पाप नहीं समझता उसी प्रकार उसे किसी भी प्राणीकी रक्षा करनेमें पाप नहीं समझना चाहिये । इस प्रकार इस गाथासे जीवरक्षा करना साधुका कर्त्तव्य सिद्ध होता है परन्तु जीतमलजीने इसी गाथाका नाम लेकर जीवरक्षा करनेमें पाप बतानेकी चेष्टा की है बुद्धिमानोंको विचार कर देखना चाहिये कि इस गाथासे जीवरक्षा करनेमें धर्म सिद्ध होता है या पाप ? ____एक साधारण बुद्धिवाला भी इस गाथाको देख कर जीव रक्षा करनेमें धर्म हो कहेगा पाप नहीं कह सकता। तथा इस गाथामें भी पूर्व गाथाओं की तरह असंयम ((हिंसा) के साथ जीवित रहना ही वर्जित किया है रक्षाके साथ जीवित रहने का निषेध नहीं है अत: इस गाथा का नाम लेकर जीव रक्षा करने में पाप कहना मिथ्या है। इसी तरह सूय० श्रु० १ अ० २ गाथा १६ वीं का नाम लेकर मरते जीवकी प्राणरक्षा करने में पाप बतलाना मिथ्या है देखिये वह गाथा यह है: __ "नो अभिकखेज्ज जीवियं नाविय पूयण पत्थएसिया । अज्जत्थ मुवेंति भेरवा सुन्नोगारगयस्स भिक्खुणो” (सूय० श्रु० १ अ० २ गाथा १६) अर्थ:___अर्थात् शून्य गृहमें निवास करते हुए साधुके निकट यदि भैरवादि कृत उपद्रव हो तो उस से डर कर भागना नहीं चाहिये किंतु अपने जीवनकी परवाह न करके उस उपद्रवका सहन करना चाहिये यह सहन अपनी मान पूजा बड़ाईके लिए नहीं किंतु स्वाभाविक होना चाहिए। यह इस गाथाका टीकानुसार अर्थ है। इस गाथामें अभिग्रहधारी साधुके लिये भैरवादि कृत उपद्रव सहन करनेका उपदेश किया गया है, किसी हिंसकके हाथसे मारे जाने वाले प्राणीकी प्राणरक्षा करनेका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034599
Book TitleSaddharm Mandanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherTansukhdas Fusraj Duggad
Publication Year1932
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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