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________________ सद्धममण्डनम् । वत्थंवा परिग्गहंवा कम्वलंवा पायपुच्छणं वा देयह देयंतं वा साइजइ" (निशीथ सूत्र) (चूर्णी) “दुल्लहे भत्त पाण डंडिय माहिणा साहारणदिन्नं तत्थ ते गिही अन्नतीत्थिया विभज्जाएयवा अहते अनिच्छा साधु भणेज्जा अहंतेपन्ना ताते साहू विभज्जति साधुणा विभयंतेणं सव्वेसिं वहु समग्गमेव विभईव्वं एसुवदेसो" (निशीथ चूर्णी) अर्थ : किसी अकाल और दुष्कालके समय दाता पुरुष अन्य तीर्थी, गृहस्थ और साधुको शामिल में ही भिक्षा लाकर देवे तो साधु उस आहारका विभाग अन्य तीर्थी और गृहस्थोंसे ही करावे । यदि वे स्वयं विभाग न करके साधुसे ही विभाग करानेकी इच्छा प्रकट करे तो साधु बराबर बराबर बांट कर सबको दे देवे यही शास्त्रका उपदेश है। इस चूर्णीमें स्पष्ट लिखा है कि "कारण पड़ने पर साधु अन्य तीर्थी और गृहस्थ को शामिलमें मिली हुई भिक्षा बांट कर दे देते हैं" अत: साक्षात् साधु भी जब कारण पड़ने परं अन्य तीथों और गृहस्थ को देता है तब यदि हीन दीन दुःखी जीव पर दया करके कोई गृहम्थ दान देवे तो उसमें एकान्त पाप कैसे हो सकता है ? कारण पड़ने पर साधु भी गृहस्थको देते हैं यह केवल निशीथ सूत्रकी इस चूर्णी में ही नहीं आचारांग सूत्रके मूलपाठमें भी कहा है वह पाठ यह है : "सेभिक्खवा २ सेजं पुण जाणिज्जा समणं वा माहणं वा गामपिण्डोलगं वा अतिहिं वा पुवपविट्ठ पेहाए नो तेसिं संलोए सपडि दुवारे चिट्ठिज्जा से तमायाय एगंत मवक्कमेजा अवक्कमित्ता अणावायमसंलोए चिहिज्जा ससेपरो अणावाय मसंलोए चिट्ठमाणस्स असणं वा ४ आहढ दलइज्जा सेयएवं वएज्जा आउसंतो समणा ! इमेभेअसणे सव्वजणाए निसि? तं मुंजह वाणं परिभाएहतंचे गइओ पडिग्गाहित्ता तुसीणिओ उवेहिज्जा । अवि आई एयं मम मेव सिया माइट्ठाण सेफासे नो एवं कारिज्जा स तमायाए तत्थगच्छिज्जा. से पुवामेव आलोइज्जा आउसन्तो! समणा ! इमे भे असणे वा ४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034599
Book TitleSaddharm Mandanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherTansukhdas Fusraj Duggad
Publication Year1932
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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