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________________ दानाधिकारः। १६९ . (उत्तर) हे गोतम ! बाल पण्डित मनुष्य तथारूपके श्रमण और माहनसे आय्य धर्म सम्बन्धी एक भी सुवाक्यको सुन कर देशसे निवृत्त होता है और देशसे निवृत्त नहीं होता देशसे प्रत्याख्यान करता है और देशसे प्रत्याख्यान नहीं करता अतः देश विरति और देश प्रत्याख्यानसे उसको नरकका आयु वन्ध नहीं होता किन्तु देवताका आयुबांध कर वह देवता होता है। यह उक्त मूल पाठका अर्थ है। इस पाठमें देश विरति और देश प्रत्याख्यानसे नरकादि गतियोंका रुकना बतलाया गया है न कि उनसे देवताका आयुबंध होना भी। यदि विरति और प्रत्याख्यानसे आयु बन्ध होने लगे तो फिर मोक्ष कैसे हो सकता है ? अतएव पन्नावणा सूत्रके २२ वें पद की टीकामें विरतिसे वन्ध होनेका स्पष्ट निषेध किया है बह टोका यह है:- . - " ननु विरतस्य कथं वन्धो नहि विरतिवन्ध हेतुभवति यदि विरतिरपि वन्ध हेतुः स्यात्तदा निर्मोक्षप्रसंगः उपायाभावात् । उच्यते-नहि विरतिवन्धहेतुः किन्तु विरतस्य ये कषायास्ते वन्ध कारणम् । तथाहि सामायक छेदोपस्थापन चारित्र विशुद्धिकेष्वपि संयमेषु कषायाः संज्वलन रूपा उदय प्राप्ताः सन्ति योगाश्च ततो विरतस्यापि देवायुकादीनां शुभ प्रकृतीनां तत्प्रत्ययो वन्धः” अर्थ: (प्रश्न) विरत पुरुषको बन्ध क्यों होता है ? विरति, वन्धका कारण नहीं है यदि विरतिसे भी वन्ध हो तो मोक्ष कैसे हो सकता है ? क्योंकि विरतिके सिवाय दूसरा कोई मोक्षका कारण नहीं है। (उत्तर) इसका समाधान यह है कि विरतिसे बन्ध नहीं होता किन्तु विरत पुरुषों का जो कषाय है वह बन्धका कारण है । सामायक, छेदोपस्थापन, और परिहारविशुद्धि आदि संयमोंमें भी संज्वलनात्मक कषाय और योग, उदयको प्राप्त रहते हैं इसलिये इन्हीं से विरत पुरुषोंका भी आयु आदिका बन्ध होता है। . यह ऊपर लिखी हुई टीकाका अर्थ है।। इस टीकामें विरतिसे बन्ध होने का स्पष्ट निषेध किया है इसलिए भगवती शतक १ उद्देशा ८ के मूल पाठमें विरति और प्रत्याख्यानसे देवताका आयु बन्ध होना नहीं कहा है। विरति और प्रत्याख्यानसे नरक आदिका आयु बन्ध रुक जाता है और विरत पुरुषों में जो कषाय और योग होता है उससे देव आयुका बन्ध होता है। अतः विरति और प्रत्याख्यानसे देवताका आयु बन्ध बतलाना मिथ्या है। देश विरति और देश प्रत्याख्यानसे जो काय कष्ट होता है उससे पुण्य बन्ध मान कर देवता होने की कल्पना करना भी मिथ्या है कहीं भी मूल पाठ और टीकामें यह नहीं . २२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034599
Book TitleSaddharm Mandanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherTansukhdas Fusraj Duggad
Publication Year1932
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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