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सद्धममण्डनम् ।
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लेकर साधुसे इतरके दानमें मांसाहार व्यसन कुशीलादिकी तरह एकान्त पाप बताना अज्ञानका परिणाम है।
[बोल १८ वां समाप्त
(प्रेरक)
भ्रमविध्वंसनकार भ्रमविध्वंसन पृष्ठ ८२ के ऊपर विपाक सूत्रका मूल पाठ लिख कर उसकी साक्षीसे साधुसे इतरको दान देने में एकान्त पाप बतलाते हुए यह लिखते हैं कि “ अथ श्हां गोतम भगवन्तने पूछ्यो इण मृगा लोढे पूर्वे काई कुकर्म कीधा कुपात्र दान दीधा तेहना फल ए नरक समान दुःख भोगवे छै। तो जो वोनी कुपात्र दानने चौड़े भारी कुकर्म कह्यो छः कायारा शत्रते कुपोत्र तेहने पोष्यां धर्म पुण्य किम निपजे"
- (भ्र० वि० ८२-८३) . इसका क्या समाधान ? . . . (प्ररूपक)
विपाक सूत्रके मूल पाठकी साक्षोसे हीन दीन दुःखी जीवपर दया लाकर दान देनेमें एकान्त पाप बताना मिथ्या है। वहां गोतम स्वामीने महावीर स्वामीसे पूछा है कि “ हे भगवन् यह “ मृगालोढ" ( किंवा दच्चा ) क्या देकर ऐसा नरकके समान दुःख भोगता है " इसका तात्पर्य यह है कि यह मृगा लोढ, किस चोर जार हिंसक आदि महारम्भी प्राणीको चोरी जारी हिंसा आदिके लिए दान देकर ऐसा दुःख भोग कर रहा है हीन दीन जीवोंपर दया लाकर दान देनेसे दुःख भोग पूछनेका तात्पर्य यहां नहीं है क्योंकि जो दान मोक्षार्थ संयति पुरुषको दिया जाता है और जो अनुकम्पा लाकर हीन दीन जीवोंको दिया जाता है उनसे दुःख भोग नहीं होता क्योंकि ये दान पापके कारण नहीं हैं अतः विपाक सूत्रकी साक्षीसे हीन दीन दुःखी जीवोंपर दया लाकर दान देनेसे एकान्त पाप बताना मिथ्या है। बिपाक सूत्रका पूरा पाठ देकर इसका खुलासा किया जाता है वहपाठ यह है:
___" सेणं भन्ते ! पुरिसे पुब्यभवे के आसिं किं णाम एवा कि गोएवा कायरंसि गामंसिवा नयर सिवाकिंवादच्चा किंवा भोच्चा किंवा समायरित्ता केसिंवा पुरा पोराणाणं दुचिण्णाणं दुप्पडिकंताणं असुभाणं पावाणं कम्माणं पावगं फलवित्ति विसेसं पञ्चणुभव माणे जाव विहरह"
(विपाक सूत्र अ०१)
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