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सद्धर्ममण्डनम् ।
.. यहां दशवैकालिक सूत्रकी गाथाओंमें अनुकम्पादान लेनेवाले श्रमण माहन दरिद्र भिखारी आदिको भिक्षार्थ गृहस्धके द्वार पर गये हुए देख कर साधुको उनका अन्तराय न देनेके लिये गृहस्थके द्वारसे टल जाना कहा है परन्तु चोर जार हिंसक और वेश्या आदिको चोरी जारी आदि कुकमके निमित्त गृहस्थके द्वार पर दान लेनेके लिये खड़े देखकर साधुको वहांसे टल जाना नहीं कहा है इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि एकांत पापके कार्यमें वाधा देनेसे अन्तरायका पाप नहीं होता पुण्यकार्यमें वाधा पहुंचानेसे अन्तराय कर्म बंधता है अत: अनुकम्पादानका किसी भी समयमें निषेध नहीं करना चाहिये क्योंकि इसमें पुण्यका सद्भाव है अतएव उक्त गाथाओंमें अनुकम्पादानमें वाधा पहुंचानेसे अन्तराय होना माना है एकान्त पापके काय्य चोरी जारी आदिमें वाधा देनेसे अन्तराय लगना नहीं कहा है इसलिये अनुकम्पादानको एकान्त पापमें बताना मूर्खाका कार्य है।
अनुकम्पादान यदि अधर्म दान में है तो उसके निषेध करनेसे वर्तमानमें भी अन्तराय न होना चाहिये जैसे चोरी जारी हिंसा आदि कुकर्म करनेके लिये उद्यत हुए पुरुष को वर्तमानमें भी निषेध करनेसे अन्तराय नहीं लगता उसी तरह अनुकम्पादानको एकांत पाप कहनेवालोंके मतमें वर्तमानमें भी उसका ( अनुकम्पादानका ) निषेध करनेसे अन्तराय न होना चाहिये । यदि कहो कि चोरी जारी हिंसा आदिके निषेध करनेसे किसीके स्वार्थमें वाधा नहीं होती इसलिये वर्तमानमें भी चोरी जारी हिंसा आदिके निषेध करने से अन्तराय नहीं होता परन्तु अनुकम्पादानके निषेध करनेसे दान लेनेवालेके स्वार्थकी हानि होती है इसलिये हम वर्तमानमें अनुकम्पादानका निषेध नहीं करते तो यह बात अयुक्त है चोरके चोरी छुडानेसे उसके कुटुम्बके भरण पोषणमें वाधा पहुंचती है एवं जार को जारीका त्याग करानेसे उसकी प्रियाके कामसुखकी हानि होती है एवं हिंसकके हिंसा छुडाने पर मांसाहारीके मांस भोजनमें क्षति होती है ऐसी दशामें (उक्त जीवोंके स्वार्थमें वाधा पहुंचने पर भी) चोरी जारी हिंसा आदिका वर्तमानमें त्याग करा देना यदि अन्तराय रूप पापका कारण नहीं है तो हीन दोन प्राणियोंके स्वार्थमें वाधा पहुंचने पर भी वर्तमान कालमें अनुकम्पादानके निषेध करनेसे तुम्हारे मतमें पाप न होना चाहिये ? परंतु तुमने वतमानमें अनुकम्पादानका निषेध करना अन्तरायका कारण माना है और शास्त्र में सभी कालमें अनुकम्पादानका निषेध करना पापका हेतु कहा है अतः अनुकम्पादानको एकान्त पापमें स्थापन करके उपदेशमें उसके त्यागकी शिक्षा देना अनुकम्पाद्रोहियों का कार्य है।
____ अनुकम्पादानको एकांत पापमें कायम करने वाले मनुष्योंसे यह भी पूछना चाहिये कि एक पुरुष हाथमें रोटी लेकर भिक्षुकोंको देनेके लिये धर्मशालामें जा रहा है और
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