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सद्धर्ममण्डनम् । देना नहीं किन्तु धर्मका कार्य है। इस प्रकार तीनों ही कालमें अधर्म दानका निषेध करना शास्त्र सम्मत है। जो लोग अनुकम्पा दानको अधम दानमें गिनते हैं वे वर्तमान कालमें भी अनुकम्पा दान का निषेध क्यों नहीं करते ? क्योंकि अधर्म दानके निषेध करनेमें किसी भी कालमें अन्तराय नहीं कहा है। यदि अधर्म दानके त्याग कराने में भी अन्तराय लगना कोई माने तो उसके हिसाबसे चोरी जारी हिंसा आदिके लिए दान देने वाले पुरुषसे भी उसके दानका फल एकान्त पाप नहीं कहना चाहिए क्योंकि एकान्त पाप बतलानेसे देनेवाला यदि न देवे तो चोर जार हिंसक आदिके लाभमें अन्तराय पड़ता है। यदि चोरी जारी हिंसा आदि महारंभका कार्य करनेके लिये चोर जार हिंसकको दान देना एकान्त पाप है इसलिए वर्तमानमें भी उसके निषेध करनेसे अन्तराय नहीं होता तो उसी तरह तुम्हारे मतसे अनुकम्पा दान भी एकान्त पाप है इसलिए उसका वर्तमानमें निषेध करनेसे भी अन्तराय न होना चाहिये। यदि कहो कि हम इन सव विषयोंमें एक समान ही मौन रह जाते हैं अर्थात् "कोई दयालु किसी दीन दुःखीको कुछ दे रहा हो और व्यभिचासर्थ कोई वेश्याको दे रहा हो, तथा चोरी जारी हिंसाके लिये कोई चार जार और हिंसकको दे रहा हो इन सभी विषयोंमें हम एक समान ही मौन रहते हैं, अन्तरायके भयसे पुण्य पाप कुछ भी नहीं कहते" तो फिर दूसरे अधर्मो में भी आपको ऐसा ही करना चाहिये क्योंकि जैसे अधर्म दान अधर्म है. उसी तरह हिंसा करना चोरी करना आदि भी अधर्म है इनका भी वर्तमान कालमें आप लोग क्यों निषेध करते हैं ?
कसाईको बकरा मारनेके लिए तैयार देख कर उपदेश द्वास उसे हिंसा छुड़ाने में भी आपके सिद्धान्तानुसार अन्तराय लगना चाहिये । यदि हिंसा छुडानेमें अन्तराय नहीं लगता तो अनुकम्पा दान छुड़ानेमें भी तुम्हारे मतमें अन्तराय न होना चहिए क्योंकि जैसे हिंसा करना अधर्म हैं अधर्म दान देना अधर्म है उसी तरह तुम्हारे मतमें अनुकम्पा दान भी अधर्म है क्योंकि देनेवाला अधर्ममें ही देता है और लेनेवाला अधर्म में लेता है उसका त्याग करा देनेसे दोनोंका अधर्म छूट सकता है अतः जिस प्रकार उपदेश द्वारा हिंसा छुड़ानेमें वर्तमानमें भी अन्तराय नहीं होता उसी तरह कोई अनुकम्पा दान दे रहा हो और लेने वाला ले रहा हो उस समय भी अनुकम्पा दानके त्याग करानेमें तुम्हारे हिसाबसे पाप न होना चाहिये । भ्र० पृ० १५० में लिखा है कि "हिंसा दिक अकार्य करता देखि उपदेश देई समझावगो" तो किसीको अधर्म दान देते देखकर क्यों नहीं समझाना चाहिये । जैसे हिंसा छुडाना धर्म है उसी तरह आपके मतमें अनुकम्पादान छुडाना भी धर्म है अतः जैसे वर्तमानमें भी हिंसा छुडाने में आप धर्म मानते
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