________________
मिथ्यात्विक्रियाधिकारः।
राधनरूप कार्योका कथन नहीं है। अतः जम्बूद्वीप प्राप्तिका नाम लेकर मिथ्यादृष्टिकी क्रियाको आज्ञामें बताना एकान्त मिथ्या है।
(बोल ३९ वां)
भ्रमविध्वंसनकार भ्रम पृष्ठ ४७ पर उवाई सूत्रका मूलपाठ लिखकर उसकी समालोचना करते हुए लिखते हैं:
__"अने जो माता पितारा विनीत कया तेहिज गुण थायसे तो इहां इमि को माता पितारो वचन उल्लंघे नहीं तिणरे लेखे एपिण गुण कहिणो जो ए गुण छै तो धर्म करता माता पिता वर्जे अने न माने तो एवचन लोप्यो ते मांटे तिणरे लेखो अवगुण कहिणो। साधुपणोलेतां श्रावक पणू आदरतां सामायक पोषा करतां माता पिता वर्जे तो तिणर लेखे धर्म करणो नहीं अने सामायकादि करे तो अविनीत थयो ते अवगुण हुवे तेहथीतो धर्म हुवे नहीं'
(भ्रम० पृ०४७-४८) इसका क्या समाधान ? (प्ररूपक)
उवाई सूत्रके मलपाठमें, माता पिताकी सेवा शुश्रूषा विनय भक्ति आज्ञा पालन करनेसे पुत्रको स्वर्ग प्राप्ति स्पष्ट लिखी है परन्तु इस शास्त्रोक्त बातके अङ्गीकार करने से भ्रमविध्वंसनकारका अपना कपोल कल्पित सिद्धांत मिथ्या ठहरता है इसलिये उवाइ. सूत्रके उक्त मूलपाठका इन्होंने विपरीत अभिप्राय बतलाया है। इनका सिद्धान्त है कि "इनके मतके साधुओंके सिवाय सभी कुपात्र हैं। यहां तक कि माता पिता ज्येष्ठ बन्धु आदि गुरुजनोंको भी यह कुपात्र कहते हैं उनकी सेवा करनेसे यह एकान्त पाप मानते हैं ऐसी दशामें उवाई सूत्रके मूलपाठका विपरीत अर्थ न करनेसे इनका मत खडा नहीं रह सकता अतः इन्होंने इस पाठका विपरीत अर्थ किया है। इनका यह कहना कि "माता पिताका विनय करना उनकी आज्ञा पालन करना यदि धर्म है तो माता पिता चोरी जारी व्यभिचार और मद्यपान मांसभक्षणकी आज्ञा देवें तो वह आज्ञा पालन करना भी पुत्रके लिये धर्म होना चाहिये और उस आज्ञाके न माननेसे पाप होना चाहिये " विलकुल कुतर्क है।
इस विषयमें बुद्धिमानोंको सोचना चाहिये कि-अपने पुत्रको चोरी जारी मद्यपान मांसभक्षण वेश्यागमन आदि बुराइयोंकी शिक्षा देने वाले माता पिता अधिक हैं या
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com