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मिथ्वात्विक्रियाधिकारः ।
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जो गाथा में शुक्लेश्या के लक्षण बताये हैं वे सब ऊपरके ही गुणस्थानोंमें पाये जाते हैं पहले गुण स्थानमें नहीं, तो उसी तरह धर्म्मध्यान भी ऊपरके ही गुणस्थानोंमें पाया • जाता है प्रथम गुणस्थानमें नहीं, ऐसा कदापि नहीं हो सकता कि गाथामें कहे हुए और सब लक्षण तो ऊपरके गुणस्थानोंमें ही पावें मगर एक धर्म्मध्यान प्रथम गुणस्थानमें भी पावे अतः उत्तराध्ययन सूत्रकी उक्त गाथाओंका नाम लेकर मिथ्यादृष्टिमें धर्म्मध्यान बतलाना एकान्त मिथ्या है ।
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( बोल ३० वां)
( प्रेरक )
भ्रमविध्वंसनकार भ्रमविध्वंसन पृष्ठ ३४ के ऊपर लिखते हैं कि “जिम एक तालाव नो पाणी एक घडो ब्राह्मग भर ले गयो अने एक घडो भंगी भर ले गयो । भंगीरा asia भंगी पाणी वाजे अने ब्राझगरा घडामें ब्राह्मणरो पागी बाजे पिग पाणी तो मीठो शीतल छै भंगीरा घडामें आया खारो भयो न थी । तथा शीतलता मिटी नहीं पाणी तो तेहिज तालाव नो छै । पिण भाजन लारे नाम बोलत्रा रूप छै । तिम शील, दया, क्षमा तपस्यादिक रूप पाणी ब्राह्मग समान सम्यग्दृष्टि आदरे भंगी समान मिध्यादृष्टि आदरे ते . तो तपशील दया नो गुग जाय नहीं। जिमि पानी ब्राह्मग तथा भङ्गी रो बाजे पिण पाणी मीठा फेर नहीं पाणी मीठो एक सरीखो छै । तिमि मिध्यादृष्टि शीलादिक पाले ते मिथ्यादृष्टि री करणी बाजे पिग करगी दोनू मोक्षमार्गनी छै ।" [ ० ० ३४ ] इस का क्या समाधान ?
( प्ररूपक )
एक तालाव से जल भरने वाले ब्राह्मग और भङ्गीका उदाहरण देकर मिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टियों के गुणको तुल्य बताना मूर्खता है । ब्राह्मण और भङ्गीमें जातिमात्रका भेद है किन्तु उस ताला की मधुरता और उपादेयताके सम्बन्ध में मतभेद नहीं है । जैसे ब्राह्मग उस तालावको मधुर और जलप्रहण करनेयोग्य समझता है भङ्गी भी उसे उसी तरह समझता है । यदि भङ्गी उस तालाब को खारा या जलप्रहण न करनेके योग्य समतो वह उससे जल नहीं भरता इसलिये भङ्गी और ब्राह्मणका विचार उस तालावके सम्बन्धमें एक है परन्तु मिथ्यादृष्टि और सम्यादृष्टिमें यह बात नहीं है । मिथ्यादृष्टि जिस मियादर्शन रूप तालावको उत्तम समझता है. सम्यग्दृष्टि उसे बुरा जनता है। तथा सम्य
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दृष्टि जिस सम्यादर्शनरूप तालावको अच्छा समझता है मिथ्यादृष्टि उसे बुरा जानता है इस प्रकार मिध्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टिके विचारमें महान् अन्तर है इस अन्तरके होते हुए
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