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राष्ट्रकूटों का इतिहास
इन ताम्रपत्रों से यह भी ज्ञात होता है कि, इस ( गोविन्दराज तृतीय ) ने के राजा पर चढ़ाई कर उसे भगादिया; मालत्रे को जीता; गुजरात विन्ध्याचल की तरफ़ की चढ़ाई में, माराशर्व को शमें कर, वर्षाऋतु की समाप्ति तक श्रीभवन ( मलखेड़ ) में निवास रक्खा; शरद् ऋतु के आने पर, तुङ्गभद्रा नदी की तरफ़ आगे बढ़, काञ्ची के पल्लव राजा को हराया; और अन्त में इस की आज्ञा से वेङ्गि । कृष्णा और गोदावरी के बीच के प्रदेश ) के राजा ने आकर इसकी अधीनता स्वीकार की । यह राजा शायद पूर्वी चालुक्यवंश का विजयादित्य द्वितीय होगा ।
संजान के ताम्रपत्र से ज्ञान होता है कि, राजा धर्मायुध और चक्रायुध दोनोंने ही इसकी अधीनता स्वीकार करली थी ।
इसी प्रकार बंग, और मगध के राजाओं को भी इस ( गोविन्दराज तृतीय ) के वशवर्ती होना पड़ा था ।
पूर्वोक्त श. सं. ७२६ के ताम्रपत्र में इसकी तुङ्गभद्रा तक की यात्रा का उल्लेख होने से प्रकट होता है कि, ये घटनायें श. सं. ७२६ (वि. सं ८६१ = ई. स. ८०४ ) के पूर्व हुई थीं ।
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उपर्युक्त तीसरा, और चौथा ताम्रपत्र वाणी, और राधनपुर से मिला है । ये दोनों मयूरखंडी से दिये गये थे । यह स्थान आजकल नासिक जिले में मोरखण्ड के नाम से प्रसिद्ध है ।
पांचवां, और छठा ताम्रपत्र श. सं. ७३२ (वि. सं. ८६७= ई. स. ८१०) का है; सौतवांश. सं० ७३३ (वि. सं. ८६८ ई. स. ११) का है; और आठवांश. सं. ७३४ (वि. सं. ८६९ = ई. स. ८१२ ) का है। इसमें लाट (गुजरात) के राजा कर्कराज द्वारा दिये गये दान का उल्लेख है ।
(१) डाक्टर वूलर टम गुर्जरराज से चापोत्कटों या अनहिलवाड़े के चावड़ों का तात्पर्य लेते हैं ( ऐपिग्राफिया कटिका, मग येग्रांट, नं० ६११० ५१ ) ( २ ) यह ताम्रपत्र अप्रकाशित है। ( इण्डियन ऐटिकेरी, भा० १२, पृ० १५८ ) (३) वाटसन म्यूज़ियम (राजकोट) की रिपोर्ट ( ई. स. १९२५ - १६२६), पृ० १३ ( ४ ) इण्डियन एण्टिक्वेरी, भाग, १२, पृ० १५६
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