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कन्नौज के गाहड़वाल जयच्चन्द्र ने अनेक किले बनवाये थे । इन में से एक कन्नौज में गंगा के तटपर; दूसरा असई ( इटावा जिले ) में यमुना के तटपर; और तीसरा कुर्रा ( कडौं ) में गंगा के तटपर था । इटावे में जमना के किनारे के एक टीले पर भी कुछ खंडहर विद्यमान हैं; जिन्हें वहाँ वाले जयच्चन्द्र के किले का भग्नावशेष बतलाते हैं। ___ 'प्रबंधकोश' में लिखा हैं:- राजा जयच्चन्द्र ने ७०० योजन (५६०० मील) पृथ्वी विजय की थी। इसके पुत्र का नाम मेघचन्द्र था । एकवार जिस समय जयचंद्र का मंत्री पद्माकर अणहिलपुर से लौटकर आया, उस समय वह अपने साथ सुहवादेवी नाम की एक सुन्दर विधवा स्त्री को भी ले आया था । जयचन्द्र ने उसकी सुन्दरता पर मोहित होकर उसे अपनी उपपत्नी बनालिया । कुछ कालबाद उसके एक पुत्र हुआ । जब वह बड़ा हुआ, तब उसकी माता (सुहवादेवी ) ने राजा से उसे युवराज पद देने की प्रार्थना की । परंतु राजा के दूसरे मंत्री विद्याधर ने इस में आपत्ति की, और मेघचन्द्र को इस पद का वास्तविक हकदार बताया। इस पर सुहवादेवी रुष्ट हो गयी, और उसने अपना गुप्तदूत भेज तक्षशिला ( पंजाब ) की तरफ़ से सुलतान को चढा लाने की चेष्टा प्रारम्भ की। यद्यपि विद्याधर ने, राज्य के गुप्तचरों द्वारा सारा वृत्तांत जानकर, इसकी सूचना यथासमय जयच्चन्द्र को देदी थी, तथापि इसने उस पर विश्वास नहीं किया । इससे दुःखित हो वह मंत्री गंगा में डूब मरा । इस के बाद जब सुलतान अपने
मौलाना मिनहाजुद्दीन ने 'तबकात-ए-नासिरी' में लिखा है:- हिजरी सन् ५१ • (वि. सं. १२५० ) में दोनों सेनापति कुतुबुद्दीन, भौर ईजुद्दीनहु सेन सुलतान ( शहाबुद्दीन ) के साथ गये, और चंदावल के पास बनारस के राजा जयचन्द को हराया। (.) यह स्थान प्रयाग जिले में गंगा के तट पर है। यहां एक किनारे पर जयचन्द्र के
किले के और दूसरे किनारे पर उसके भ्राता माणिक्यचन्द्र के किले के भग्नावशेष विद्यमान हैं । इस ग्राम के कबरिस्तान को देखने से अनुमान होता है कि, सम्भवतः यहाँ भी कोई युद्ध हुमा था, और उसमें विजयी जयचन्द्र ने मुसलमानों का
भीषण संहार किया था। (२) मेहतुङ्ग की बनायी 'प्रबन्धचिन्तामणि' में भी सुइवादेवी का मुसलमानों को बुलवाना
लिखा है । यह पुस्तक वि० सं० १३६२ ( ई. स. १३०५ ) में लिखी गयी थी।
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