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________________ प्रतिमा मंडन रास. (२३) वली सुबुद्धि मंत्रीसरे, प्रतिबोधन जितशत्रु महाराजके । फरहोदक आरंभियो, ते आरंभ कहो किण काजके । कु. ॥ ५२ ॥ स्थावच्चा पुत्रनो कियो, कृष्णे व्रत उछव अतिसारके। स्नान आदिक आरंभियों, काम धरमके अरथ विचारके । कु.॥५३|| सूरयाभे नाटक कियो, भगवंत आगल बहु विस्तारके। तिणे ठामे आरंभ थयो, किंवा न थयो करो विचारके । कु.॥ ५४॥ मेरु शिखर महिमा करे, जिन न्हवरावे मिल सुर रायके । आरंभ जइ बहुलो कियो, जाणी जै छै पुण्य उपायके। कु.॥ ५५॥ ५श्रेणिक कोणिक वंदवा, चाल्या हय गय रथ परिवारके । तिहां कारण स्युं जाणिये, आरंभ विण नहि धरम लगारकोकु.॥५६॥ गुरु आव्या उछवकरो, नरनारी मिल सामा जाय के । ते आरंभ न लेखवो, तो जिन पूजा उथ्थापो काइके । कु.॥५७ ॥ पुह, देवलोक बारमें, नवा प्रसाद करावन हारके । दीसें अक्षर एहवा, महा निसीथ सिद्धांत मजार के । कु. ॥ १८ ॥ १ राजाको प्रतिबोधनेके वास्ते, गंदा पाणीको स्वच्छ किया, सो धर्मके वास्तेकि, अधर्मके वास्ते ? ॥ २ थाबच्चा पुत्रका व्रत ओछवमें, कृष्ण राजाने स्नानादिक अनेक आरंभ, धर्मके वास्ते कियाकि, अधर्मके वास्ते ? ॥ ३ सूर्याभ देवने-भगवंतकी भक्तिके वास्ते, नाटक किया, उसमें-आरंभ हुवा कि नहीं ? ॥ ४ भगवंतोंके जन्म महोत्सवमें-नदीयां चाले उतना पाणीका आरंभ, देवताओंने-पुण्यके वास्ते, किया कि नहीं ? ॥ . ५ श्रेणिकादि, बडा आरंनके साथ-वंदना करनेको, धर्मके वास्ते-गये कि नहीं ? | . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034587
Book TitlePratima Mandan Stavan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherChunilal Chagandas Shah
Publication Year
Total Pages42
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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