SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २२ ) प्रतिमा मंडन रास. उपदेश अच्युत देवने, प्रभावतो पूजी शुभ चित्तके । कु. ॥ ४२ ॥ श्री आवश्यके दाखियो, वगुर शेठ तणो दिष्टांतके । मल्लि स्वामी प्रतिमा तणी, इह लोकारथ सेव करतके। कु.॥ ४३ ।। गाथा भत्त पयन्ननी, जोवो श्रावक जन आलंबके । करावे जिन द्रव्यमुं, जिनवर देवल जिन बिंबके । कु. ॥४१ ।। चौवी सथ्यो मानो तुम्हे, कीत्तिय, वंदिय, 'महिया, पाठके। महियानो श्युं? अर्थ छे, साच कहो एकडो मांडके । कु. ॥ ४५ ॥ नाम जिना ठबणा जिना, द्रव्य जिना भावजिना वखाणके । मानो काइ न मूढमति, चारे निक्षेपा सूत्रां जाणके । कु. ॥ ४६ ।। भुवण पति वाण व्यंतरा, जोइसी वली वेमाणिय देवके । ए सुर चार निकायना, सारे जिन प्रतिमानी सेवके । कु.॥४७॥ नंदी अनुयोग दुवारमें, पूजाना सगले अधिकारके । सूत्रेही माने नहीं, तो जाणिये बहुल संसारके । कु. ॥४८॥ जो कहिस्यो पूजा विषे, थाय छे बहुलो आरंभके । तो दृष्टांत कहुं सांभलो, मत राखो मन मांहि दंभके । कु. ॥ ४९ ॥ ज्ञाता अंगे इम कह्यो, प्रतिबोध्या माल्लिनाथें छ मित्रके । प्रतिमा सोवनमें करी, दिन प्रति मूके कवल विचित्रके । कु.॥५०॥ जीव तणी उतपति थइ, कुथित आहार तणो परमाणके । सावध आरंभ ये कियो, बिहुअरथामें अरथ वखाणके । कु.॥५१॥ १ महिया, शब्दका अर्थ-देखो सम्यक्क शल्योद्धारमें ।। २ आरंभमें धर्म नहीं होता है, ऐसा कहने वालेको समजाते है।। ___३ छ मित्रको प्रतिबोंधनेके वास्ते-मल्लिनाथने, जीवोंकी उत्पत्ति कराईथी, सो धर्मके वास्तकि, अधर्मके वास्ते ? ।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034587
Book TitlePratima Mandan Stavan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarvijay
PublisherChunilal Chagandas Shah
Publication Year
Total Pages42
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy