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प्राचीन तिब्बत
आसपास के देवी-देवता तो मुझसे अप्रसन्न नहीं हैं, किन्तु मुझे मार्ग में कुछ कठिनाइयों का सामना अवश्य करना पड़ेगा । उसकी यह भविष्यवाणी सच भी हुई।
मैं सिक्कम में अपने पूर्व परिचित 'अवतारी लामा' से मिलो। उसने सहर्ष मेरा स्वागत किया। उसे मेरे खोज के काम में दिलचस्पी लेते देर न लगी । बड़े उत्साह के साथ उसने इस काम में मुझे मदद दी ।
सिक्कम में मेरा काम सबसे पहले मठों की जाँच करना हुआ। तराई के जङ्गलों में इधर-उधर कुछ यहाँ और कुछ वहाँ — प्रायः पहाड़ी की चोटियों पर स्थित ये गुम्बाएँ बड़ी भली लगती थीं । किन्तु उनके बारे में मेरी जो धारणा थी, वह ग़लत साबित हुई । सिक्कम की गुम्बाएँ बड़ी दीन-हीन अवस्था में हैं। उनकी आमदनी बहुत थोड़ी है । यहाँ के धनिकों में से कोई भी उनमें कुछ साहाय्य नहीं देता है और यहाँ के शिक्षार्थी (त्रापाओं) को स्वयं अपने खर्च के लिए काम करना पड़ता है ।
जब कोई मर जाता है तो उसके श्राद्ध कराने का गुरुतर भार इन्हीं मठ के साधुओं के सर पर पड़ता है और इस काम को ये बड़े चाव से करते भी हैं। बात यह है कि श्राद्ध के बाद तरह-तरह के माल पर हाथ साफ़ करने का मौका मिलता है और दक्षिणा से जेब अलग गरम होती है। कोई कोई तो बेचारे अपने घर भरपेट खाना तक नहीं पाते हैं और जब कोई पैसेवाला यजमान मर जाता है तो ऐसों की बन आती है।
बहुत से गाँवों में लामा पुरोहितों की जगह तान्त्रिक ले लेते हैं। पर इससे उनमें परस्पर काई द्वेष नहीं पैदा होता । एक हद तक कह सकते हैं कि एक दूसरे की विद्या में विश्वास भी रखता है। लामा का आदर पुरान मतावलम्बी बोन और ङन्ग-स्पा ( राज्य
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