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लामा लोगों का आतिथ्य
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बहुत कहने-सुनने पर वह राजी हुआ । लेकिन उसने मुझसे वादा करा लिया कि जब तक मैं उसके पास रहूँगी, गङ्गटोक या दक्षिण की ओर जाने का विचार न करूँगी ।
लामा गोमळेन के पास कुछ दिनों तक रुक जाने से मुझे बहुत हो लाभ हुआ । व्याकरण और भाषाकोष से जब-तब काम पड़ते रहने से तथा लामा के साथ बातचीत करते-करते मुझे तिब्बती भाषा की अच्छी खासी जानकारी हो गई । साथ ही साथ तिब्बत देश के बहुत से प्रसिद्ध करामाती लामाओं को जीवनियों से भी मेरा परिचय हो गया। पढ़ाते-पढ़ाते वह प्रायः रुक जाता और अपनी निज की देखी हुई घटनाओं का वर्णन करने लगता । बहुत से पहुँचे हुए लामाओं के साथ उसकी मुलाक़ात थी। उन सबकी बातचीत, जीवनी और चुटकुले वह, ज्यों का त्यों, मुझे सुनाता रहता । इस प्रकार उसके पास उसकी अपनी गुफा में बैठे-बैठे मैं धनी से धनी लामाओं के महलों में घूम आती; बड़े से बड़े सिद्ध संन्यासियों की गुफाओं की सैर कर आती: सड़क पर टहलती और रास्ते में एक से एक अनोखे आदमियों से मेरी भेट होती थी। इस ढङ्ग पर मैं तिब्बत देश के निवासियों से, उनके रीति-रिवाज और विचारों से भली भाँति परिचित हो गई। यह जानकारी बाद को मेरे बड़े काम आई ।
लेकिन इससे कोई यह न समझ ले कि मैंने यहाँ रुककर तिब्बत में और आगे बढ़ने का विचार ही बदल दिया और अगर मैं ऐसा करना चाहती भी तो मेरे लिए ऐसा करना असम्भव था । इस निर्जन रेगिस्तान में मेरे नौकर-चाकर मेरे कहने से भला कब तक रुक सकते थे । मुझे शीघ्र ही चोर्टेन नाइमा वापस आना पड़ा। यहाँ से मैं शिगात्जे के लिए रवाना हुई । मेरे साथ में योङ्गदेन और केवल एक भिक्षु और था । हम तीनों घोड़े पर
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