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प्राचीन तिब्बत ___"क्या कोई बहुत खास बात है ?" गोमछेन ने पूछा-"बहुत खास और बहुत ज़रूरी।"
"सम्भवत: आप जो राय चाहते हैं, वह आपको मिल सकता है।" . मैंन साचा शायद वह अपने गुरु लामा के पास कोई हरकारा या पत्रवाहक भेजेगा। मैं सफर के लम्बे फ़ासिले की ओर उसका ध्यान आकृष्ट करना चाहती हो थी कि एकाएक उसकी चेष्टा की
ओर मेरी दृष्टि गई। उसने अपने नेत्र मूंद लिये थे। शोघ्रता के साथ उसका चेहरा पीला पड़ा जा रहा था और उसके अंग कड़े हुए जा रहे थे। मुझे भय हुआ कि शायद उसे वर चढ़ आया है, लेकिन लामा तुल्कु ने मुझे उसे छेड़ने से रोका ।
"चुपचाप, शान्त बैठी रहो।" उसने धीरे से कहा-“लामा लोग अक्सर बातें करते-करते समाधि की अवस्था में चले जाया करते हैं। उन्हें जगाना नहीं चाहए। इससे उनके प्राण तक जाने का भय रहता है।" ___ मैं रुक गई। एकाएक लामा ने आँखें खोली और एकटक ऐसे देखते हुए बोला जैसे वह सो रहा हो, उसकी बोली भो बदली हुई थी,-"कोई चिन्ता मत करो; यह मसला कभी तुम्हारे सामने उठेगा ही नहीं।"
फिर उसने धीरे-धीरे अपनो आँखें बन्द कर ली । उसको मुखाकृति बदली और वह अपने आपे में आ गया। हमारे और सवालों को वह टाल गया और कुछ क्षण बाद ही अपने कमरे में इस तरह उठकर चला गया जैसे वह बिल्कुल थक गया हो।
लामा तुल्कु मेरी ओर मुड़े-"उसके इस उत्तर का कुछ भी मतलब नहीं निकलता है।"
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