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उपसंहार
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भाता रिम्पोछे का बड़ा सम्मान करती थीं और जब मैं उनके यहाँ मेहमान थी तो उक्त लामा के विषय में कई असाधारण कहानियाँ सुनने को मिली थीं
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हाँ, तो रिम्पोछे ने मूर्त्ति की प्राण-प्रतिष्ठा के शुभ कार्य के लिए रुक जाने का ही निश्चय किया और उन्होंने ताशी लामा को इसके लिए वचन भी दे दिया। सम्भव है, इस प्रकार का वादा पाठकों को अचम्भे में डाल दे। लेकिन इस देश के निवासियों की निश्चित धारणा है कि योग्य अनुभवी लामा अपने इच्छानुसार स्वयं अपने मरने का समय निश्चित कर सकते हैं।
तब मेरे शिगाज से चले आने पर लगभग एक वर्ष के बाद सब तैयारी हो चुकने पर ताशी लामा ने नियत तिथि पर एक बढ़िया पालकी और कुछ चोबदारों को बड़ी सज-धज के साथ क्योंगवू रिम्पोछे को लिवा लाने के लिए भेजा।
चोबदारों ने रिम्पोछे को पालकी के भीतर घुसते हुए अपनी आँखों से देखा । दरवाजे बन्द कर दिये गये । पालकीवालों ने पालकी उठाई और चल दिये ।
ताशिल्पो की विख्यात गुम्बा के सामने लाखों की संख्या में लोग इस शुभ कार्य की पूत्ति को देखने के लिए एकत्र हुए थे। अकस्मात् उन लोगों ने विस्मय में आकर देखा कि क्यों बू रिम्पोछे अकेले और पैदल चले आ रहे हैं। उन्होंने चुपचाप मन्दिर के प्रवेश द्वार को पार किया और सोधे मैत्रेय भगवान् की विराट मूर्ति के पास पहुँचे। उन्होंने अपने हाथों से उसका स्पर्श किया और इसके बाद वे उसी में विलीन हो गये ।
कुछ समय के पश्चात् पालकी चोबदारों के साथ पहुँची ।
लोगों ने उसका दरवाज़ा खोला 1 जगह खाली थी ।
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