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प्राचीन तिब्बत
कि चिरारा बुक गया है या तुम्हारे सर पर कोई चीज भी रक्खी हुई है ?" तब कहीं जाकर उसे अपनी मूर्खता का पता चला। कभी-कभी चिराग़ के बजाय पानी भरकर कोई छोटा सा प्याला भी रख देते हैं।
चिराग़ या प्याले से सम्बन्ध रखनेवाली बहुत सी छोटी-छोटी कहानियाँ पूर्व के सभी देशों में प्रचलित हैं। भारतीय साहित्य में इनकी संख्या बेशुमार है | एक यहाँ पर दी जाती है
किन्हीं ऋषि का कोई शिष्य था, जिसकी आध्यात्मिक उन्नति पर स्वयं उन्हें बड़ा गर्व था । इस विचार से कि उनके प्रिय शिष्य की शिक्षा में अगर कोई कोर-कसर रह गई हो तो वह भी पूरी हो जाय, उन्होंने उसे यशस्वी राजर्षि जनक के पास भेजा । जनक ने उस शिष्य के हाथ में एक प्याला दिया और उस प्याले में लबालब पानी भर दिया गया । शिष्य को इसी प्याले को हाथों में लिये हुए राजप्रासाद के एक बड़े कमरे के चारों कोने तक घूम ने की आज्ञा हुई।
यद्यपि राजर्षि जनक संसार की समस्त विलास - पूर्ण सामग्रियों से विमुख थे, किन्तु तो भी उनके महल का ऐश्वर्य देवताओं के मुँह में पानी ला देता था। सोने और क़ीमती पत्थरों से जड़ी हुई दीवाले, वस्त्राभूषण से सुसज्जित दरबारी एक बार देखनेवालों की आँखों को चकाचौंध कर देते थे । अगल-बगल खड़ी हुई अर्धनम दिव्यांगनाओं को मात करनेवली नर्त्तकियाँ शिष्य की ओर कटाक्ष फेंक- फेंककर मुस्कराई, हँसी और उसका ध्यान आकर्षित करने के लिए और न जाने कौन-कौन सी चेष्टाएँ उन्होंने की; परन्तु शिष्य बराबर उसी प्याले पर अपनी दृष्टि गड़ाये रहा । और जब वह जनक के राजसिंहासन के पास फिर पहुँचा तो पानी ज्यों का त्यों था। एक बूँद भी प्याले के बाहर नहीं छलकी थी।
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