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प्राचीन तिब्बत बैठता है। दोनों ध्यानस्थ हो जाते हैं और दोनों को विचारधारा एक निर्धारित दिशा में बहती है। नियत समय के बाद शिष्य गुरु से ध्यान के समय की अपनी विविध मानसिक अवस्थाओं को बतलाता है। उसके अपने विचार जहाँ तक गुरु के विचारों से मिलते-जुलते हैं और जहाँ उनमें परस्पर अन्तर होता है-उन सब पर वह ध्यान देता है।
अब यथाशक्ति मन को अपने अधीन करके शिष्य सब प्रकार के विचारों से मस्तिष्क को खाली कर देता है। तब उसके चित्त में अपने आप जो-जो भाव अकस्मात् उठते हैं और जिनका उसके वर्तमान कारबार या अनुभूति से कुछ भी सरोकार नहीं रहता है, उन पर वह गौर करता है। उसके मस्तिष्क-पटल पर जो-जो चेतना-सम्बन्धी चित्र स्पष्ट प्रकट होते हैं उन्हें वह देखता जाता है।
और फिर अन्त में ध्यान के बाद वह इन भावों और चित्रों को गुरु से बतलाता है जो इस बात की जाँच करता है कि कहाँ तक ये उसके संकेतित पदार्थों से मिलते-जुलते हैं।
फिर इसके बाद शिक्षक शिष्य को बैठे-बैठे मानसिक आदेश भेजता है, जिनके अनुसार शिष्य कार्य करता है। अगर इसमें सफलता प्राप्त हो गई तो और आदेश दिये जाते हैं । साथ ही साथ दोनों अपने बीच के फासले को भी बढ़ाते जाते हैं।
शिष्य लोग कभी-कभी अपने आप अपनी जाँच करने के लिए एक दूसरे के पास मानसिक आदेश उस समय भेजते हैं, जब कि उसे पानेवाला किसी दूसरे काम में व्यस्त होता है। इस खबर के लेने की ओर उसका थोड़ा भी ध्यान नहीं होता। जिन लोगों से कभी कोई जान-पहचान नहीं होती श्रार जो लोग टेलीपेथी किस चिड़िया का नाम है, यह भी नहीं जानते, उनके भी
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