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प्राचीन तिब्बत कभी-कभी जब दोस्ती निभाने का सवाल आ पड़ता तो थप्पड़ जमानेवाले का हाथ उठता तो बड़े जोर से लेकिन ठीक जगह पर पहुँचने से पहले बीच में ही उसका सारा ज़ोर खतम हो जाता। पर दावसन्दूप उड़ती चिड़िया पहचानता था। वह सब समझता था। ऐसे लोगों के लिए उसके पास दूसरी दवा थी। ___"अच्छा अच्छा, इधर आओ, तुम्हें अभी पता नहीं; थप्पड़ भी ठोक नहीं जमाना आता। चलो इधर, आओ हम अच्छी तरह सिखा देंगे।" ___ अब वह थप्पड़ लगाना अच्छी तरह सीख गया है-इसका परिचय उसे अपने साथी के गाल पर दुबारा चपत लगाकर देना होता। साथ ही अपने नये सीखे हुए सबक को भी शीघ्र भूलने की उसकी हिम्मत नहीं पड़ती थी। ___ दावसन्दूप के बारे में मुझे और भी कई मज़दार बातें याद हैं लेकिन मेरा अभिप्राय कदापि उसकी हँसी उड़ाने का नहीं है। ऐसे भलेमानस देखने-सुनने में कम आते हैं और यह मैं अपना परम सौभाग्य समझती हूँ कि ऐसे योग्य दुभाषिये से मेरी भेंट हो गई थी।
सिक्कम का उत्तराधिकारी कुमार विद्वानों का बड़ा आदर करता था। उसने त्राशिल्हुम्पो के सुप्रसिद्ध महाविद्यालय के माननीय दार्शनिक कुशोग चास-द्-जूद को अपने यहाँ अतिथि बनाकर रक्खा था। कुशोग राजधानी के पास ही एन-चे की गुम्बा के महन्त बना दिये गये थे और उन्हें कोई बीस चेलों को व्याकरण और धर्मशास्त्र पढ़ाने का पवित्र कार्प्य भी सौंपा गया था। ___ कुशोग चोस्-द्-ज दे एक गेलुग्स-पा अर्थात् त्सोंग खापा (१४०० ई०) के नये मत 'पीली टोपी'वाले लोगों के सम्प्रदाय के अनुयायी
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