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प्रा० जै० इ० दूसरा भाग
विशेषण हैं । और ये से लागू हो सकते हैं, रूप से प्रयुक्त नहीं हो सकते ।
लिए थे- ये सब राजा प्रियदर्शिन् के लिये ही यशोगानरूप सब उनके नाम के साथ ही समय रूप अन्य किसी भी राजा के लिये वे सम्यक्
( पूर्ति लेख )
पदच्युत महाराजा अशोक के लेख की पूर्ति
( १ ) रॉयल एशियाटिक सोसायटी पु० १८८७ पृ० १७५ की टिप्पणी में लिखा है कि- “ The testimony of Megarsthenes would likewise seem to imply that Chandragupta submitted to the devotional teachings of the Shramanas as opposed to the doctrines of the Brahmins."
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इस वाक्य से दो बातें सिद्ध हो सकती हैं । प्रथम तो यह कि चन्द्रगुप्त प्रथमतः ब्राह्मण धर्म पालता रहा होगा, किन्तु पीछे से उसने जैनधर्म को स्वीकार किया होगा; दूसरी बात यह कि मेगेस्थेनीज के समकालीन रूप में तो नहीं, किन्तु पुरोगामी रूप में चन्द्रगुप्त का समय होगा । किन्तु ग्रीक लेखकों ने मेगेस्थेनीज को चन्द्रगुप्त उर्फ सेंडू कोट्स के दरबार में एलची होने की बात लिखी है । सारांश यह कि ग्रीक लेखकों का
तथा १३ टिप्पणी नं० ६ पैराग्राफ ७ १०, दे० रा० भांडारकर कृत “अशोक" पृष्ठ १५६ - ११८ इण्डि० एंटि० १६११ पृ० ११ के ऊपर पृष्ठ १७ - १८ पैरा २७ श्रादि देखिए ।
(२८) श्रवणबेलगोला का शिलालेख देखिए ।
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