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प्रा० जै० इ० दूसरा भाग (१०) रूपनाथ, वैराट् तथा सहस्राम के लेख७९ भी सम्राट प्रियदर्शन के हैं, यह प्रो० पिशल का मत है। इनके मूल लेख का अनुवाद करते हुए डाक्टर वुलहर अपनी अलग सम्मति प्रगट करते हैं, तिस पर भी यह मानते हैं कि प्रो० रीज डेविस जो प्रथम २५६ के साल का निर्णय नहीं कर पाये थे, बड़े शोध के बाद प्रो० पिशल के मत पर पहुँचे थे।
(११) नागार्जुन की गुफा के लेखों में सम्राट अशोक के पौत्र तथा उसके बाद तात्कालिक गद्दी पर बैठने वाले के रूप में देवानां प्रियदशरथ ० का नाम लिखा है, इससे भी निश्चित सा हो जाता है कि अशोक के बाद गद्दी पर बैठने वाला १ प्रियदर्शन २ गजा ही था और उसी ने गुफा के भीतर लेख खुदवाये हैं और उसका दूसरा नाम दशरथ था।
(१२) महावंश या दीपवंश जैसे सर्व मान्य बौद्ध ग्रन्थों में कहीं भी यवन राजा का नाम तक दिया हुआ नहीं मिलता 3
(७६) इण्डिनएण्टीक्वेरी पु० ७ पृ० १४२ इसके मूल लेखक प्रो. पिशल हैं किन्तु डा० बुलहर ने इसका अनुवाद करके छपाया है ।
(८०) देखिए-प्रो० हुल्टश कृत "अशोक के शिलालेख" भाग १ प्रस्तावना पृ० XXV और XXVIII विशेष के लिए देखिए टीका नं० १२३ ब पृ०
(२) देखिए पृ० में प्रमाण नं० २४ + (८२) देखिए-पृ० में प्रमाण पाँचवाँ ।
(८३) ( देखिए-२० भाण्डारकर पृ० १६४) ग्रीक राज्य के प्रदेश में किसी भी बौद्ध भिक्षु ने जाकर धर्म का उपदेश किया हो, यह कहीं भी लिखा नहीं है । ( वही पु० पृ० १५६)
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