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प्रा० जै० इ० दूसरा भाग
छानबीन करने के बाद, जो कुछ आज माना जा रहा है उसे भली प्रकार अन्यथा सिद्ध किया जा सकता है, यह होते हुए समय और स्थानाभाव के कारण यहाँ उन तमाम बातों में मात्र दो ढाई दर्जन प्रमाण अपने कथन की पुष्टि में दूंगा और उनके विश्वास योग्य होने पर आप अवश्य मेरी बात को ठीक मान लेंगे ऐसी आशा है।
(१) सब से प्रथम स्तम्भ लेख क्या बतलाते हैं ? किस लिए "अहिंसा" अप्राणातिपात को सर्वोपरि स्थान दिया गया है ? जिस क्रम से ये लेख लिखने प्रारम्भ किये गए हैं वह प्रारम्भ ही बतला रहा है कि इसका कर्ता जैन ही६° होना चाहिए, बौद्ध नहीं।
(२) श्री गिरनारजी की तलहटी में जो सुदर्शन नाम का तालाब था उसके जीर्णोद्धार के सम्बन्ध का लेख वहाँ खुदा हुआ है, उसका भाषान्तर प्रो० पिटर्सन६१ ने इस तरह किया है "इस तालाब को सम्राट चन्द्रगुप्त के समय में वैश्यगुप्त६२ ने खुदवाया और उसका घाट सम्राट अशोक के समय में हुपस नाम के सूबेदार ने पहली बार बनवाया था, और दूसरी बार का जीर्णोद्धार (मरम्मत ) प्रियदर्शिन के समय में किया गया है।"
(६०) देखिए इण्डियन एण्टीकरी १९१४ महावीर का समय नामक लेख (तीनों भागों में )।
(६१) अहिंसातत्व को जैसा महत्व जैनधर्म में दिया गया है, वैसा और किसी भी धर्म में दिया गया है, ऐसा सिद्ध होना असम्भव है। (६२) देखिए भावनगर शिलालेख संस्कृत और प्राकृत पृ० २० ।
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