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प्रा० जै० इ० दूसरा भाग
के कारण यह दृढ़ विचार सा करने लग गए हैं कि सेण्ड्रोकोट्स चन्द्रगुप्त ही है और वही सिकन्दर से उसकी छावनी में मिला था। इस विचार को मिटाने की बात तो दूर रही पर उस पर जराविवाद या शंका करके उसे कसौटी पर कसने के लिए जबरदस्त प्रयास करना पड़ेगा । इसके बाद ही इतिहास का शुद्ध स्वरूप ज्ञात होगा।
इसके लिए दूसरे शोध करने वाले जैसे ईसा पूर्व ३२७ की साल को मध्यवर्ती मान कर दूसरी घटनाओं का काल निश्चित करते गए हैं उसके स्थान पर हमें कोई दूसरी ही घटना को केन्द्र मान कर काम लेना चाहिए।
ऐसे विकट प्रश्न को सामने लाने के पूर्व मुझे एक संपूर्ण पाठक वृन्द से इस बात की प्रतिज्ञा करानी है कि ऐसे विषय पर लिखने का यह मेरा प्रथम प्रयास और उसके ध्येय को किस प्रकार सम्मुख रखना और उसकी चर्चा करके उसे दृढ़ सिद्धान्त रूप में किस तरह रखना । इस विषय में मैं कोई निष्णात नहीं हैं
और इसके लेख में जहाँ कहीं कुछ अविनय या त्रुटि या शिथिलता देख पड़े उन सबको मुझ पर कृपा कर क्षमा करेंगे।
यह बात तो उचित ही है कि जिस किसी ऐतिहासिक घटना का समय निश्चित हो गया हो और किसी दूसरी घटना का साल भी गणित शास्त्र के नियमानुसार ठीक से जच जाय तो उस दूसरी घटना के काल के बारे में जरा भी शंका नहीं रहती
और उसे सत्य माना जाता है । इसी नियम के अनुसार सेण्डोकोट्स चन्द्रगुप्त ही है ऐसा मानने के पूर्व ही मैं मौर्यवंश की वंशावली आपके सम्मुख रक्खू गा। यह कार्य कुछ कठिन तो अवश्य है किन्तु अनिवार्य और उसी के आधार पर आप स्वयं
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