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विशेष विवेचन
आपना सात प्रश्नोनो उत्तर अमारा जाणवा प्रमाणे आवी रीते आपेलो छे. ते उपरथी अमारो तात्पर्यार्थ एवो छे के कोइ पण क्रियामां हिंसात्मक कर्म कर नहीं - - आपणा आर्य वेदो अने आर्य पुराणो. तेने माटे पोतानां सबल प्रमाणोथी पोकार करीने कहे छे. अने आ भारती प्रजाने क्षणे क्षणे अने पदे, पदे एवो उपदेश आपेलो छे के हे आर्य पुत्रो ! तमो आर्यना पवित्र मार्गे चालजो अने जेम तमारी आर्यता उज्वल रीते शोभे तेम आर्यपणाना उत्तम लक्षणो धारण करजो जे लक्षणो आपणा महात्मा मनु पोतानी स्मृतिमा आप्रमाणे आपेछे.
अहिंसा सत्यमस्तेयं, शौचमिन्द्रियनिग्रहः || दानं दमो दया शान्तिः सर्वेषां धर्म साधनम् ॥
अर्थ-अहिंसा, सत्य, चोरी न करवी ते, प्रवित्रता, इंद्रिओने कबजे राखवी अने क्षमा ए सर्वे धर्मनां साधन छे. आचाराध्याय || श्लोक १२२ ॥
आ प्रमाणे सर्व स्मृतिकारोनो पण अहिंसाने माटे एक सिद्धान्त जोवामां आवे छे. जो के पशु हिंसानो यज्ञ एक पक्षथी विहित हशे, पण तेने माटे कठोपनिषद्नी श्रुतिमां आ प्रमाणे छे. प्लवाह्येते अदृढा अज्ञरुपा अष्टादशोद्यमवरं येषु कर्म एतच्छ्रेयो येऽभिनंदति मूढानरा मृत्युन्ते पुनरे वापियन्ति ।। अर्थः-पशु हिंसामय यज्ञरुपि ए वहाण मजबुत नथी जेमां सोळ ऋत्विज अने बे दर्भपति मळी अढारनुं अवश्य कर्म छे. ए कर्मने जेओ श्रेयमानी वखाणे छे, ते मूढ लोको वारंवार जरामृत्युने पाम्या करे छे.
आवी रीते आ उपनिषद्नी श्रुति पण आपणा अहिंसात्मक धर्मनेज प्रतिपादन करे छे. आ विषयमां जेटलुं बोलीए तेटलुं थोडुं छे.पण हवे आपणे प्रस्तुत उपर विचार करीए . आपणा महाराजा जे प्रतिवर्ष दशराने दिवसे पशुनुं बलिदान आपता हशे पण ते कोइ विधिथी अपातुं नहीं होय कदापि आपणे तांत्रमत प्रमाणे पशुनु बळिदान करवानो विधि स्वीकारीए पण ते हालमां कोई ठेकाणे विधिथी अपातो नथी. ते तो फक्त नीच लोको भुवाना ढोंग उपरथी पशुने जेम जेम मारी नांखे छे, पण तेमां कोई जातनी मांत्रिक क्रिया करवामां आवती नथी. माटे अविधिथी हणेलो पशु यजमानने केतुं नठारुं फळ आपे छेतेने माटे आचाराध्यायमां महात्मा मनु लखे छे के
वसेत् सनरकेघोरे दिनानि पशुरोमभिः । संमितानि दुराचारोयो हन्त्य विधिना पशून् ॥
अर्थ:- जे दुराचारी - विधि विना केवल नकामो पशु मारे छे ते पशुना जेटला दिवसो सुधि घोर नरकमां पडे छे. तेमज बीजुं पण प्रमाण छे के
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