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________________ ३२ ७ पशुवधने बदले तेनां नाक कान छेदवां अथवा आकार करवाथी ते क्रिया पूर्ण थाय ए मानवुं असंभवित छे. कारण के हिंसानो प्रसार पण एवी रीतेज दाखल थयेल छे, जैम थोडुं पाखंड- पूर्वापर जतां मोटुं रूप पकडे छे, ते प्रमाणे आ रहेली रीत पण पाछलना कोकमां हिंसानी प्रवृत्ति करनारुं नीवडेज. आ प्रश्नोनो टुंक खुलाशो उतावलने लीधे टुंकामां लख्यो छे. पण जो कोई शास्त्री के पंडित वेदने नामे आवुं हिंसा कर्म साबीत करवा इच्छा राखतो हशे अने महाराजाश्रीनी सत्यशास्त्रनो शोध करवानी तथा सत्यनुं ग्रहण करवानी इच्छा होय तो अमारी अथवा मुम्बईनी आर्यसमाजनी साथै सत्यताथी शास्त्रार्थ अथवा लेखीशास्त्रार्थ अथवा जो कोई पेपर वा ए ध्यानमां लई पोताना पत्रमां रजा आपे तो अमारा पंडितो तेम करवाने शक्तिमान थशे. माटे उपर उपरमा खोटा डंभाणथी नहीं मुंझातां सत्यनुं ग्रहण अने असत्यनो त्याग करवा तथा प्रयत्नो करवा चुकशो नहीं. अने तेम करी आपना महाराजाश्रीने अघोर पापथी दूर राखवा प्रयत्न करशो. जेथी आपनुं तथा आपना महाराजाश्रीनुं ईश्वर सदा कल्याण करशे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat तथास्तु. लि. आपनो कृपाकांक्षी, शा. तिलकचंद ताराचंद वैद्य, आर्यसमाजना तंत्री सूरत. www.umaragyanbhandar.com
SR No.034575
Book TitlePashu Vadhna Sandarbhma Hindu Shastra Shu Kahe Che
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year
Total Pages309
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationBook_Gujarati, Book_Devnagari, & Book_English
File Size24 MB
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