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________________ नं.२० अमलसाडवाला शास्त्री रामकृष्ण इच्छारामनो अभिप्राय. श्रीमत् महाराणा राजा साहेब कमीटीना मेम्बरो-तथा. प्राणजीवन जीगजीवन महेता समीपेषुआपनी पवित्र जाहेरखबर हाळ बेत्रण दिवसमांन मलवाथी तथा समय आवा गंभीर विषयने माटे बहु ओछो होवाथी-स्थाली पुलाकन्यायवत् संक्षेपमांप्रश्नना उत्तरो यथामति नीचे प्रमाणे छे. १- वेद शास्त्र तथा पुराणादि ग्रन्थोमां ज्या ज्यां राजप्रकरणो जोइए तो त्या त्यां विजया दशमी विगेरे पर्वपर पाडा बकरा विगेरेनो वध राज्यश्रेयने माटे लखेलो जोवामां आवतो नथी. बहु कालथी चालता ए आसुरी वाम मार्ग(जेनो बौध मतथी अगाडी अधिक जोर हतो) थी हिंसामय क्रूर मार्गनो प्रचार थयेलो संभवे छे. अंगोपांग शास्त्रोमां ए वात बिलकुल नथी. वेद शास्त्रोमां प्रजापिडक व्याघ्रसिंह वनसूकरादिनो तथा वेदविरोधि आतत्यायीनो वध करवानो राज पुरुषोने विधि जणाय छे. यदि पुराणिक पंडितो हठयी मार्कंडेयादि पुराणोमां एवां क्रूर करम करवाने जणावे तो ते सृष्टिकम युक्ति तथा इश्वरनागुणकर्म अने स्वभावने अनुकूल न होवार्थी सिद्धान्त पक्षे मान्य थइ शके नही. सांख्य दर्शनमां कापलजीए कह्यु छे के "नायौक्तिकस्य संग्रहोन्यथा बालोन्मत्तादिसमत्वं" अर्थात् ग्रन्थोमां ने अयोक्तिक संग्रह होय ते उन्मत्त बालकोना जेवो समजवो. तो दीन अनाथ तथा संसार जीवनभूत प्राणिओनी हिंसा विजयादशमी विगेरे पर्व उपर करवी कराववी ए कोइ आर्ष शास्त्रोमां विधिपूर्वक प्रयुक्त जणातुं नथी. वळी योगवसिष्टना मुमुक्षु प्रकरणना अढारमा सर्गमां वसिष्ट महामुनिए महाराज रामचंद्रनीने का छे के अपि पौरुषमादेयं शास्त्रंचेयुक्तिबोधकं अन्यत्त्वार्षमपि त्याज्यं भाव्यं न्यायैक सेविना ॥ १॥ युक्तियुक्त मुपादेयं वचनं बालकादपि अन्यत्तृणमिव त्याज्य मप्युक्तं परमेष्टिना ॥ २॥ अर्थ-अपक्षपाती मनुष्ये युक्तिबोधक शास्त्र साधारण पुरुषे रचेलूहोय तथापि स्वीकार, पण युक्ति विनानुं ऋषिए कहेलं होय तो पण त्याग करवू केम के युक्तियुक्त वचन बाळकथी पण गृहण करवा योग छे. ने युक्तिरहित कदी प्रजापतिए कह्यु होय तथापि घासनी पेठे हलकुं गणी त्याग करवू. तो राजधर्ममां एवी हिंसाथी श्रेय थाय एवां वचनो बतावनारां शास्त्रो कदी मोटा महर्षि ने नामे जणावी सिद्ध करता होय तथापि ईश्वरना न्यायने भणी धर्मात्मा मनुष्ये निर्भयताथी छोडी देवा जोइए. वैशेषिक शास्त्रोमां महर्षि कणादे का छे के दुष्टं हिंसायाम् अर्थात् हिंसाकर्म विशे प्रवृत्ति ए दुष्ट कर्म छे माटे एवा निंद्य कर्मथी राज्य, श्रेय थतुं नथी. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034575
Book TitlePashu Vadhna Sandarbhma Hindu Shastra Shu Kahe Che
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year
Total Pages309
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationBook_Gujarati, Book_Devnagari, & Book_English
File Size24 MB
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