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________________ [ ५४ ] उसको बुलवा कर तिरस्कार शब्दों से इस कदर ललकारी -फटकारी कि हे पापिनी! ऐसे महान् उपकारी गुरुदेव ने तुझपर बड़ा भारी उपकार किया । जो तूं घोर हिंसा से नरक के कर्म बान्ध रही थी उससे बचाने का क्या यही फल है ? इत्यादि वचन श्रवण कर चामुंडा ने लज्जित हो कर प्राचार्यदेव के चरण कमलों में शिर झुकाकर अपने अपराध को माफी मांगी।प्राचार्यश्री ने प्रसन्नचित्त होकर चामुंडा देवी को मधुर और रोचक शब्दों में ऐसा प्रभावशाली उपदेश दिया कि देवी के हृदय से चिरकालीन मलीनता रफ्फूचक्कर हो गई जैसे सूर्य के प्रकाश से चोर भाग छुटत हैं । देवी अपने कुकृत्य का मन ही में पश्चाताप करने लगी तत्पश्चात् देवी ने मिथ्यात्व का त्याग कर आचार्यदेव के समीप सम्यक्त्व रत्न को धारण कर लिया। "श्रीसच्चिकादेवी सर्वलोक प्रत्यक्ष श्रीरत्नप्रभाचार्य प्रतिबोधिता श्रीउपकेशपुरस्थित श्रीमहावीर भक्ता कृता सम्यक्त्व धारिणी संजाता" ___ सर्व देवी देवता और मनुष्यों के सामने आचार्य श्री ने चामुंडादेवी कोउपकेशपुर स्थित भगवान महावीर की भक्ता बनाई और देवी अपने वचन पर सत्य रहने से सूरिजी ने इसका नाम सच्चिया रक्खा तत्पश्चात् देवी ने सूरिजी से कहा भगवन् ? "प्रास्तां मांसं कुसुमम पि रक्तं न इच्छामि" हे दयालो ? आज पीछे मांस तो क्या पर लालरंग के फूल तक को भी मैं नहीं चाहूँगी । देवी ने जन समूह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034570
Book TitleOswal Vansh Sthapak Adyacharya Ratnaprabhsuriji Ka Jayanti Mahotsav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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