________________
[ ५१ ] बात यह बनी कि वीरं निर्वाण पश्चात् ७० के श्रावण मास में उपकेशपुर के क्षत्रियादि अजैनों को जैन बनाया, यह बात वाममार्गियों को तो खूब ही खटक रही थी पर प्राचार्य श्री के सामने उनका कुछ भी जोर नहीं चला; राजा और प्रजा अहिंसा धर्म के कट्टर अनुयायी बन गए थे।
दिन निकलते आश्विन मास का दसहरा (नौरात्री) नज़दीक आने लगा। उपकेशपुर में परम्परा से यह कुप्रथा चली आ रही थी कि घर पीछे भैंसा और मनुष्य पीछे बकरे का बलिदान चामुंडादेवी को दिया जाता था। जब दसहरा ( नौरात्रि) नज़दीक आने लगा तो वाममार्गियों ने हल्ला मचाया कि अहिंसा के उपासक देवी को बलिदान देंगे या नहीं ? इस पर श्रावक लोग भी बड़े ही विचार में पड़े कि अब क्या करना ? वे सब मिल के प्राचार्य श्री के पास आये और अर्ज करने लगे कि यदि चामुन्डा देवो को बलिदान न दिया जाय तो
“सा कुटुम्बान् मारयति" देवी हमारे सब कुटुम्ब को मारदेगी। इस पर प्राचार्य श्री ने फरमाया कि तुम क्यों घबराते हो?
"पुनराचार्यैः प्रोक्तं अहं रक्षां करिष्यामि" __ मैं आपकी रक्षा करूँगा। भला इतना तो आप स्वयं समझ सकते हो कि मनुष्य भी उन घृणित पदार्थों (मांसादि) से नफरत करते हैं तो फिर देव देवी उनको कैसे स्वीकार करेंगे? यह तो मांसाहारी लोगों ने निज स्वार्थ के लिए कुप्रथा चलाई है और व्यन्तरादि देवों के. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com