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________________ आर्यसमुद्रसूरि. (७) अतिशय ज्ञानेंद्र मुनि ५०० मुनियों के साथ विहार करता अवंति ( उजैन ) नगरी के उद्यानमें पधारे यहांका राजा नयसेन था अनंगसुन्दरी राणि तथा उसका करीबन १० वर्षका पुत्र केशीकुमारादि और नागरिक मुनिश्रीको चन्दन करने को आये. मुनिनीने संसार तारक दुःख निवारक और परम वैराग्यमय देशना दी देशना श्रवणकर यथाशक्ति व्रत नियम कर परिषदा मुनिको वन्दन कर विसर्जन हुई पर राजकुमर केशीकुमर पुन: पुन: मुनिश्री के सन्मुख देखता वहांही बैठा रहा फीर प्रश्न किया कि हे करूणासिन्धु ! में जैसे जैसे आपके सामने देखता हूँ वैसे वैसे मेरेको अत्यन्त हर्ष-रोमांचित्त हो रहा है वैसा पूर्वमें कबी किप्ती कार्य में न हुवा था इतना ही नहीं पर आप पर मेरा इतना धम्म प्रेम हो गया है कि जिस्कों में जबानसे कहने में भी असमर्थ हु । ... मुनिश्रीने अपना दिव्यज्ञान द्वारा कुमर का पूर्व भव देखके कहा कि है राजकुमर । तुमने पूर्वभवमें इस जिनेन्द्र दीक्षा का पालन कीया है वास्ते तुमको मुनिवेष पर राग हो रहा है। कुमरने कहा क्या भगवान् ! सञ्चही मेरा जीवने पूर्षभव में जैन दीक्षा का सेवन कीया है ? इसपर मुनिने कहा कि हे रानकुमार । सुन इस भारत वर्ष के धनपुर नगरका पृथ्वीधर राजा की सौभाग्यदेविके सात पुत्रियों पर देवदत्त नामका कुमार हुवा था. वह बाल्यावस्थामें ही गुणभूषणाचार्य पास दीक्षा ले चिरकाल दीक्षापाल अन्तमें सामाधिपूर्वक कालकर पंचवा ब्रह्मस्वर्गमे देव हुवा वहांसे धध कर तुं राजा का पुत्र केशी कुमार हुवा है यह सुन कुमर को उहापोह करतों ही नातिस्मरण ज्ञानोत्पन्न हुषा जिससे मुनिने कहा था वह आप प्रत्यक्ष ज्ञान के जरिये सब आबेहुब देखने लग गया बस फिर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034569
Book TitleOswal Porwal Aur Shreemal Jatiyo Ka Sachitra Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year1929
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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