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________________ (५४) जैन जाति महोदय. प्र-तीसरा. देवि हुँ आपने मेरा करडका मरडका छोडाया जिस्का यह फल है सूरिजीने कहा कि इस फल से तो मुझे नुकशांन नहीं फायदा है पर तु तेरा दील में विचार कर कि उस करडका मरडका का भविष्य में तुमे क्या फल मिलेगा पूर्वोपार्जित पुन्य से तो यहां देव योनि पाई है पर पशु हिंसा करवा के तीर्यच हो नरक मे जाना पडेगा. उस समय चक्रेश्वरी आदि देवियों सुरिजी के दर्शनार्थी आइ थी चमुंडा और सूरिजी का संवाद देख चमुंडा को एसे उच्च स्वर से ललकारी देषि लजित हो अपनि वेदना को वापिस खांच सूरिजी के चरणाविद में वन्दन नमस्कार कर अपने अज्ञानता से किया हुषा अपराध की माफि मांगी यहां पर बहुत से लोग एकत्र हो गये थे श्री सच्चिकां देवी सर्व लोक प्रत्यक्ष श्री रत्नप्रभाचार्यः प्रतिबोधिता"श्री उपकेशपुरस्था श्री महावीर भक्ता कृता सम्यक्त्व धरिणी संजाता पास्तां मांसं कुशममयि रक्तं नेच्छति कुमारिका शरीरे अवतीर्ण सती इति वक्ति भो मम सेवका अत्र उपकेशस्थं स्वयंभू महावीर. बिंवं पूजयति श्री रत्नप्रभाचार्य उपसेविति भगवान् शिष्य प्रशिष्य व सेवति तस्याहं तोपंगच्छति । तस्य दुरितं दलयामि यस्य पूजा चित्ते धारयामि" सब लोगों के सामने सञ्चिका देवि ' अर्थात् चमुंडा देविने पहला सुरिजी को वचन दीया था कि आप के यहां विराजनासे बहुत उपकार होगा वह वचन सत्य कर बताने से सूरिजीने चमुंडा का नाम सञ्चिका रखा था " को आचार्य रत्नप्रभसूरिने प्रतिबोध दे भगवान् महावीर के मन्दिर की अधिष्टायिक स्थापन करी तब से देषि मांस मदिर छोड Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034569
Book TitleOswal Porwal Aur Shreemal Jatiyo Ka Sachitra Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year1929
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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