________________
(४४) . जैन जाति महोदय. प्र-तीसरा. ओर आकाश गुंज उठा झणकार रणकार के साथ चक्रेश्वरी आंबिका पद्मावती ओर सिद्धायक। देवियों सूरिजीकों वन्दनार्थ आई वहभी नम्रता भावसे चन्दन किया. राजा मंत्री ओर नागरिक लोग यह दृश्य देख चित्रवत् हो गये अहो हम निर्भाग्य इसे अमूल्य रत्नको एक कांकरा समज तिरस्कार किया इस पापसे हम कैसे छुटेगें! राजा प्रना सूरिजीसे जैनधर्म धारण करने में इतने तो आतुर हो रहे थे को सब लोगोंने जनौयों ष कण्ठियों तोड तोडके सूरिजी के चरणों मे डालदी और अर्ज करी कि भगवान आपही हमारे देव हो आपही हमारे गुरु हो आपही हमारे धर्म हो आपके वचनहो हमारे शास्त्र है हम तो आजसे आप और आपकी सन्तानके परमोपसक है इतनाही नहीं पर हमारी कुल संतति भविष्यमे सूर्यचन्द्र पृथ्वीपर रहेगा यहांतक जैनधर्म पालेगा और आपके सन्ता. नके उपासक रहेगा यह सुनते ही चक्रेश्वरी देवि बज्ररत्नके स्थालमे पासक्षेप लाई सूरिजीने राना उपलदेव मंत्रि उहड और नागरिक क्षत्रिय ब्राह्मण वैश्यों को पूर्व सेवित मिथ्यात्वकी आलोचन करवाके महा ऋद्धि सिद्धि वृद्धि सयुक्त महामंत्र पूर्वक विधि विधान के साथ पास क्षेप दे कर उन भिन्न भिन्न वर्ण और जातियोंका एक "महाजन संघ" स्थापन किया उस समय अन्य देवियों के साथ च मुंडा भी हाजर थी वह विच में बोल उठी कि हे भगवान् । आप इन सब को जैनोपासक बनाते सो तो ठीक है पर मेरा कडुडके मडके न छोडावे सूरिजोने कहां ठीक है देवि तुमारा कड्डका मड्डका न छुडाया जावेगा । इस पवित्र दृश्य को देख उन विद्याधरोंने
१ देखो नोट नम्बर ३
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com