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________________ जैन धर्म की सत्यता. { ४३ ) हे प्रभो। इसका कारण यह था कि हम लोगों को पहलासे हि एसा शिक्षण दीया जाता था की जैन नास्तिक है ईश्वर को नहीं मानते है शास्त्रविधिसे यज्ञ करना भी वह निषेध करते है नन देव को पूजते है अहिंसा २ कर जनताका शौर्य पर कुठार चलाते है इत्यादि पर आज हमारा शोभाग्य है कि आप जैसे पर मोपकारी महात्माओंके मुखाविन्दसे अमृतमय देशना श्रवण करने का समय मीला, हे दयाल । आज हमार सब भ्रम दूर हो गया है नतों जैन नास्तिक है न जैनधर्म जनताको निर्बल कायर बनाता है जिस्मे ईश्वरत्व है उसे जैनधर्म ईश्वर (देव) मानते है जैनधर्म एक पवित्र उच्च कोटीका स्वतंत्र धर्म है हे विभों । इतने दिन हम लोग मिथ्यात्व रुपी नशेमे एसे धैभान हो मिथ्या फाँसीमे फस कर सरासर व्यभिचार अधम्मका धर्म समझ रखाथा सत्य है कि विना परीक्षा पीतलकोभी मनुष्य सोना मान धोखा खालेता है यह युक्ति हमारे लिये ठीक चरतार्थ होती है हे भगवन् । हम तो आपके पहलेसेही ऋणि है आप श्रीमानों ने एक हमारे जमाइकोही जीवतदान नहीं दीया पर हम सबको एक भवके लियेही नहीं किन्तु भवोभवके लिये जीवन दीया है नरकके रहस्ते जाते हुवे हमको स्वर्ग मोक्षका रहस्ता बतला दिया है इत्यादि सूरिजी के गुण कीर्तन कर राजाने कहा की हम सब लोग जैनधर्म स्वीकार करने को तैयार है आचार्यश्रीने कहा " जहांसुखम्” इस सुअवसर पर एक नया चमत्कार यह हुषा की आकाशमे सनधन अवाजो और झाणकार होना प्रारंभ हुवा सब लोग उर्व दृष्टि कर देखने लगें इतने मे तो वैमानोंसे उत्तरते हुवे सेंकडो विद्याधर नरनारियों सालंकृत शरीर सूरिजी के चरण कमलो बन्दना करने लगें इतनामे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034569
Book TitleOswal Porwal Aur Shreemal Jatiyo Ka Sachitra Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year1929
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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