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बारहा व्रत विवर्ण.
(४१) है (३) तीसरा व्रतमे पूर्वोक्त स्थुल चौरी करना मना है (४) चतुर्थ व्रत में परस्त्रि वैश्यादि से गमन करना मना है (५) पंचवा व्रत में धनमाल राज स्टेट वगैरह का नियम करने पर अधिक बडाना मना है (६) छठा व्रत में चोतरफ दिशाओं में जितनी भूमिका में जाने का प्रमाण कर लिया हो उससे अधिक नाना मना है ( ७ ) सातवा व्रत में पहला तो भक्षाभक्षका विचार है मांस मदिर वासीविठ्ठल सहेत मक्खनादि जो कि जिस्मे प्रचूर जीवों की उत्पति हो वह खाना मना है दूसरा व्यापरापेक्षा है जिस्मे ज्यादा पाप और कम लाभ और तुच्छव्यापर हो एसे व्यापार रूपी कम्र्मादान करनामना है (८) अनर्था दंडव्रत है जोकी अपना स्वार्थ न होने पर भी पापकारी उपदेशका देना दूसरों की उन्नति देख इर्षा करना आवश्यक्तासे अधिक हिंसा कारी उपकरण एकत्र करना प्रमाद के वस ही घृत तेल दुद्ध दही छास पाणि के वरतन खुले रख देना इत्यादि (९) नौवा व्रतमे हमेशां समताभाव सामायिक करना (१०) दशवा व्रतमे दिशादि मे रहे हुवे द्रव्यादि पदार्थों के लिये १४ नियम याद करना (११) ग्यारवा व्रतमे आत्माको पुष्टिरूप पौषध करना (१२) बारहवा व्रत अतित्थी महात्माओको सुपात्रदान देना इन गृहस्थधर्म पालने वालोको हमेशों परमात्मा की पूजा करना नये नये तीर्थो की यात्रा करना स्वाधर्मि भाइयों के साथ पात्सल्यता और प्रभावना करना नीषदया के लिये बने वहां तक अमरिय पहहा फीराना, जैनमन्दिर जैनमूर्ति ज्ञान साधुसाध्वियों श्रावक श्राविकाओं एवं सात क्षेत्रमें समर्थ होनेपर द्रव्य को खरचना और जिनशासनोन्नति मे तनमन धन लगा देना गृहस्थोंका आचार है आगे बड के मुनिपद की इच्छावाले सर्व प्रकारसे जीवहिंसाका त्याग एवं झूट बोलना चौरी
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