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________________ (४०) जैन जाति महोदय. प्र-तीसरा. जुवा एवं सात कुव्यसन सर्वता तज्य है रात्रिभोजनादि अभक्ष पदार्थों की बिलकुल मना है जो पूर्वोक्त कार्य करनेघाले धर्म और धर्म गुरुओ की तरफ जैन हमेशो तिस्कार की दृष्टि से देखता है जैन धर्म पालने वालो के लिये मुख्य दोय रहस्ता बतलाया हुवा है (१) गृहस्थ धर्म (२) मुनि धर्म जिस्मे गृहस्थ धम्म के लिये सम्यक्त्व भूल बारहा व्रत है जिस्मे व्यवहार सम्यक्त्व उसे कहते है कि (१) देव अरिहन्त वीतराग सर्वज्ञ लोकालोक के भाषो को जाननेवाले सदा परोपकार के लिये जिसका प्रयत्न है जिस्के जीवन की पवित्रता और मुद्रामें शान्त रस देखने से ही दुनिया का भला होता है एसे देव को देव बुद्धिकर मानना इस्के सिवाय राग द्वेष विषय विकार के चिन्ह मिस के पासमे हो जिसके पशुओ की बलि चढती हो एसे देव मे कभी देवत्व न समजे (२) गुरु निग्रन्थ अहिंसा सत्य अचौर्य ब्रह्मचार्य और ममत्व भाष रहीत अचाई सच्चाई अमाई न्याई पेपरवाई उसका लक्षण है परोपकार पर जिस का जीवन है इत्यादि (३) धर्म जिस देवने अपना संपूर्ण ज्ञान बलसे दुनियों का उद्धार के लिये धर्म कहा है जैसे दान शील तप भाव पूजा प्रभावना सामायिक प्रतिक्रमण व्रत नियम विनय भक्ति सेवा उपासना आसन समाधि ध्यान इत्यादि अर्थात् पहला इन देवगुरु धर्म पर खुब पृढ श्रद्धा प्रतित और रूची होना जरूरी है बाद अगर गृहस्थ धर्म पालना है तो उसके लिये बार हा व्रत है (१) पहला व्रतमे हलता चलता मीषों को विगर अपराध मारने की बुद्धिसे नहीं मारना अगर कोइ अपराध करे कोइ मारने को आवे आज्ञा का भंग करे उस का सामना करना इस व्रत का भंग नहीं है (२) दूसरा व्रत में राजदंड ले लोगों मे भांडाचार हो एसा धडा झुटबोलना मना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034569
Book TitleOswal Porwal Aur Shreemal Jatiyo Ka Sachitra Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year1929
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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