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मंत्रिपुत्र को सर्प काटा.
( ३७ ) देषितों अदृश हो गई ( दूसरी पट्टावलि में वह मुनि सूरिनी का शिष्य था ) लोगोंने यह सुन बडा हर्ष मनाया और राजा व मंत्री के पास खुशखबरदी राजाने हुकम दीया कि उस मुनि को लावों, पर मुनि तो अदृश हो गया था तब सब कि स.. म्मति से सब लोगों के साथ कुमर का झांपांन को ले सूरिजी के पास आये " श्रेष्टि गुरु चरणे शिरं निवेश्य एवं कथयति भो दयालु ममदेवरूष्टामम गृहीशून्यो भवति तेन कारणेनमम पुत्र भिक्षां देहि " राना और मंत्री गुरुचरणो मे सिर चका के दोनता के बचनो से कहने लगे । हे दयाल । करूणासागर आज मेरे पर देव रूष्ट हुवा मेरा गृह शुन्य हुवा आप महात्मा हो रेखमें भी मेख मारने को समर्थ हो वास्ते में आपसे पुत्ररूपी भिक्षा को याचना करता हु आप अनुग्रह करावे । इसपर उ० वीरधवल ने कहा " प्रासु जल मानीय चरणोप्रक्षाल्य तस्य छटितं " फासुकजल से गुरु महाराज के चरणो का प्रक्षाल कर कुमर पर छंट को बस इतना कहने पर देरी ही क्या थी गुरु चरणों का प्रक्षाल कर कुमर पर जल छांटतो ही "सहसात्कारण सजोव भूवः" एकदम कुमर बेठा हुवा इधर उधर देखने लगा तो चोतरफ हर्षका वाजिंत्र बज रहा लोग कहने लगे कि गुरु महाराज की कृपासे कुमरजी आज नये जन्म आये है सब लोगोंने नगरमे जा पोषाको बदल के बडे गाजावाजा के साथ सूरिजी को हजारो लाखों जिह्वाओं से आशीर्वाद देते हुधे बडे ही समरोह के साथ नगर मे प्रवेश किया. राजाने अएने खजानाषालो को हुकम दे दिया कि खजाना में बडिया से पडिया रत्नमणि माणक लीलम पन्ना पीरोजिया लश णियादि बहुमूल्य जवेरायत हो वह महात्माजी के चरणो मे भेट करो? तदानुस्वार रत्नादि भेट किये तथा ऊहड श्रेष्टिने भी बहुत द्रव्य भेट किया।
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