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जैन जाति महोदय. प्र- तीसरा.
शीघ्रगामनी शांडणी की सवारी कर पद्मावती की तरफ रवाना हो गये सूरिजी महाराज सवेरे अपनि मुनि क्रिया से निवृति पाते ही विचाबल से एक मुहुर्तमात्र में पद्मावती पहुंच गये सिधे. ही राजसभा में गये इतने में श्रीमाल नगर के श्राद्धवर्ग भी वहां पहुंच गये श्रीमाल की बात सब नगर में फेल गई-रान सभा चिकारबद्ध भरा गई सूरिजीने तो यह ही ' अहिंसा परमो धर्म:' पर विवेचन कर व्याख्यान दीया इस पर ब्राह्मणभासोने कहा महात्माजी यहाँ श्रीमाल नगर नहीं है कि आप का उपदेश अषण कर स्वर्ग-मोक्ष की प्राप्ति वाला यज्ञ करना छोड दे ? सूरिनीने कहा महानुभावों न तो में श्रीमाल नगरसे पोट बन्ध लाया हुं न मेरे को यहांसे कुच्छ ले नाना है मे तो रहस्ता भुला हुवा को सद् रहस्ता बतला रहा हुँ और सदुपदेशद्वारा जनताका कल्याण करना मेरा कर्तव्य समझता हुं जैसे की
" तुष्यन्ति भौजनैविप्राः मयूर धन गजितः ।
साधवः पर कल्याणैः खल पर विपत्ति भिः ॥" सूरिजीने भाव यज्ञ का व्याख्यान करते हुवे कहा कि" सत्य यूपं तपो ह्यग्नि: कर्माणा. समिधोमम् । __ अहिंसामहुति दद्या. देव यज्ञ सतांमतः ॥"
सत्य का यूप तप की अग्नि कर्मों की समाधी (लकडीयों) और अहिंसा रूपी आहुति से आत्मा कि साथ चिरकाल से कम लगा हुवा है उन को होम कर आत्मा को पवित्र बनाना विनों का धर्म बितलाया है इस यज्ञ से जीव स्वर्ग मोक्ष को प्राप्त हो सक्ता है। हे विमों तुम पशु हिंसा रूप मिथ्या यज्ञ कर खुद रौद्र नरक में जाने का प्रबन्ध करते हो
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