SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूरिजी और श्रीमाल. (१९) करदों कि कोई भी शक्स कीसी प्राणिको मारेगा उसे प्राणि के बदले अपना प्राण देना पडेगा. राजा अहिंसा भगवती का परमोपासक बन गया । फिर आचार्य पीने जैनधर्म का स्वरुप मुनि या श्रावक धर्म का वर्णन कर विस्तारपूर्वक सुनाया फल यह हवा की वहांपर ९०००० घरो वालोने जैन धर्म को स्वीकार कर आचार्य श्री के चरणोपासक बन गये. आगे चलकर इस श्रीमालनगर के जैन लोग अन्योन्य नगरमें निघास कीया तब नगर का नामसे इन जैनो की श्रीमाल जाति प्रसिद्ध हुई* ___ श्रीमालनगर के लोगोंने सूरिजीसे अर्ज करी कि हे करुणासिन्धु | आप के यहाँ पधारने से हजारो लाखो पशुओं को अभयदान मोला और क्रूर कर्मरूपि मिथ्यामत्त सेवन कर नरकमे जाने वाले जीवो को सम्यक्त्व रत्न की प्राप्ति हुई स्वर्ग मोक्ष का रहस्ता मीला अर्हन्त धर्म की बड़ी भारी प्रभावना हुई आप का परमोपकार का बदला इस भवमे तो क्या पर भवो भवमें देना हमारे लिये अशक्य है आपकी सेवा उपासना क्षणभर भी छोडनी नहीं चाहते है तद्यपि एक अरज करना हम बहुत जरूरी समजते है वह यह है की आयु के पास पद्मावती नामकी नगरी है वहां का राजा पदमसेन ने भी देवी के उपद्रव को शान्ति करने के हेतु अश्वमेघ यज्ञ का प्रारंभ कीया है कल पूर्णिमा का वह यज्ञ है अगर यहां पर आप श्रीमानों के पधारना हो जाय तो जैसा यहां लाभ हुपा है वैसा ही वहां भी उपकार है । सूरिनीने इस बात को सहर्ष स्वीकार करलि और संघ को कह दीया की हम कलशुभे ही पद्मावती पहुंच जावेंगे. गृहस्थ लोगोंने * देखो नोट नम्बर १. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034569
Book TitleOswal Porwal Aur Shreemal Jatiyo Ka Sachitra Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year1929
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy