SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ केशीश्रमणाचार्य. ( ९ ) के वादविवादमें आत्मशक्तियोंका दुरुपयोग होने लगा. यज्ञ कर्म और पशु हिंसकों का फिर जौर बढने लगा धार्मिक और सामाजिक श्रृंखलनायें में भी परावर्तन होने जगा. यह सब हाल उत्तर भरतमें रहे हुवे केशी श्रमणाचार्यने सुना तब दक्षिण भरतमें विहारकरनेवाले मुनियोंको अपने पास बुलवा लिया अद्यपि कितनेक मुनि रह भी गये थे. दक्षिणविहारी मुनि उत्तरमें आने पर कुच्छ अरसा के बाद वहां भी वह ही हालत हुई कि जो दक्षिणमे थी । इधर आचाfat घर की बिगडी सुधारने में लग रहे थे उधर पशुहिंसक यज्ञवादीयोंने अपना जोर को बढाने में प्रयत्नशील बन यज्ञका प्रचार करने लगे. घरकी फूटका यह परिणाम हुवा कि एक पिहित मुनिका शिष्य जिस्का नाम बुद्धकीर्ति था उसने समुदायसे अपमानीत हों जैन धर्मसे पतित हो अपना बौद्ध नामसे बोद्ध धर्म का प्रचार करना शरु किया । बुद्ध कीर्तिने अपने धर्म के नियम एसे सिधे और सरल रखे कि हरेक साधारण मनुष्य भी उसे पाल सके बन्धन तो वह किसी प्रकारका १ जैन श्वेताम्बर आम्नाय के आचारांग सूत्र कि टीकामें बुद्ध धर्म्म का प्रवर्तक मुल पुरुष बुद्धकीर्ति पार्श्वनाथ तीर्थ में एक साधु था जिसने बोद्ध धर्म्म चलाया. २ दिगम्बर आम्नायका दर्शनसार नामका ग्रन्थमें लिखा हैं कि पार्श्वनाथ के तीर्थ में पिहित मुनिका शिष्य बुद्धकीर्ति साधु जैन धर्म से पतित हो मांस मट्टि आचारण करता हुवा अपना नाम से बोद्ध धर्म्म चलाया है. ३ बोद्ध ग्रन्थोंमें लिखा है कि बुद्ध एक राजा शुद्धोदीत का तापसों के पास दीक्षा लीथी बोधि होनेके बाद अहिंसा धर्म का कया था इसका समय भगवान् महावीर के समकालिन माना जाता है हो. बुद्धने जैनोंसे अहिंसा धर्म की शिक्षा जरुर पाई थी. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat पुत्र था वह खूब प्रचार कुच्छ भी www.umaragyanbhandar.com
SR No.034569
Book TitleOswal Porwal Aur Shreemal Jatiyo Ka Sachitra Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year1929
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy