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( ५ ) है-मूर्च्छति समुच्छ यतीति मूर्तिः, सम्-सुष्ठ उत्-ऊर्वश्रयःश्रयणं-लमुच्छ्रयः, समुच्छ य एव समुच्छायः ( ऐरव-३३५६)। भावे घङ । अर्थात् अच्छी तरह उच्च सुख के लिये यानी परम. शान्ति के लिये बा परमसुख के लिये या उच्चलोक के लिये 'जिसकी सेवा की जाय या जिसका आश्रय लिया जाय उसे मूर्ति कहते हैं___ मूर्ति का वाचक शब्द कितना है, उसे अमरसिंह ने जिम्ना है
मात्र वपुः संहननं शरीरं षर्म विग्रहः । कायो देह क्लीव पुंसोः स्त्रियां मूर्तिस्तनुस्तनूः ॥
(अमर कोष) अर्थात्-गात्र, वपुस्, संहनभ, शरीर. वर्म, विग्रह, काय, देह. मूर्ति, तनु और तनू ये ११ शब्द मूर्ति के पर्यायवाची हैं।
श्रीयुत् हेमचन्द्राचार्य ने भी लिखा है कि__ “ मूर्तिः पुनः प्रतिमायां कायकाठिन्ययोरपि"
(अभिधान चिन्तामणि ) अर्थात्-मूर्ति शब्द प्रतिमा वाचक है, शरीरवाचक है और कठिनता ( कड़ापन ) वाचक है। .
पूज--पूजायाम्, अर्थात् पूज धातु पूजन अर्थ में है, अत:पूज्यते-मनसा वाचा फूल फल-धूप-दीप-जल-गन्धाक्षतादिना सत्कारविशेषो विधीयतेऽनेनेति पूजनम् , पूजनमेव पूजा। अर्थात् मन से वाणी से और सामयिक फूल-फल-धूप-दीप-गन्ध जल-छाक्षत-नैवेद्य आदि उपकरणों (सामग्री ) के द्वारा इष्टदेव
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