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टुकड़े के ऊपर अपने पैर रख सकते हैं ? मौलवी - लाल लाल आंखें करके कहने लगा, क्या आपको धर्मं और जान का भय नहीं जो ऐसी बदतमीजी बातें कर रहे हो, क्या तुम्हें खुदा का कुछ भी भय नहीं ? जो इस पर मुझे पैर रखने को कहते हो। क्या तुम्हे यह मालूम नहीं कि हम लोग अपने धर्म के ऊपर कुर्बान होने के लिये भी हमेशा तैयार रहते हैं ।
दादाजी - क्योंजी, मौलवी साहब, आप बिना शोचे समझे. इतने रंज क्यों हो गये ? अब भी जरा शोचिये तो सही कि पहले मैंने श्राप से क्या कहा था और अब क्या कह रहा हूँ ? जो आप बहुत जल्द ही इतने गुस्से में आगये, मैं ने तो आप से शिर्फ यही पूछा कि, क्या आप इस कागज के टुकड़े पर अपना पैर रख सकते हैं ? इतने ही में आप हद्द से बाहर हो गये और मुझे बहुत खोटी खरी सुननी पड़ी, इस से तो मुझे साफ साफ मालुम होता हैं कि आाफ अपने मूंह से जड़ चीजों को आदर करने लग गये, यह क्या ?
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कब जड़ का श्रादर किया है ?
मौलवी - म ने दादाजी - क्या कागज और स्याही जड़ नहीं है ?
मौलवी - हां हां जड़ नहीं तो और क्या है ?
दादाजी - मौलवी साहब, यदि ऐसी बात है तो श्राप इतने गुस्से में आकर हद्द से बाहर क्यों हो गये ? क्योंकि, इसमें कागज का टुकड़ा और स्याही इनके अलाव
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