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(५४) भावार्थ:-(१) पण्डित गोविन्दराजजी का कहना है कि यहां देवता शब्द से शिव.आदि देवता हैं और पुष्प आदि से उनके पूजन का नाम " देवताभ्यर्चन" है। ..' भाषार्थ:-(२) मेधातिथि कहते हैं कि "देवताभ्यर्चना शब्द का अर्थ प्रतिमाओं का ही पूजन अभीष्ट है। इसी तरह (३) (४) पण्डित कुल्लूक भट्ट और सर्वज्ञ नारायण को उपयुक्त अर्थ ही स्वीकार है। अतः एव इन प्रमाणों से देवताओं की पूजा करने से मूर्ति-पूजा ही सिद्ध होती है । आर्य-महात्मन् , हमारे धर्म शास्त्रों में तो देवताओं का अर्थ
विद्वान् माना गया है, क्योंकि " शतपथ ब्राह्मण" में लिखा है कि “विद्वान्सो वै देवाः" अर्थात् विद्वान् ही देवता है, इसलिये 'देव-मूर्ति' का अर्थ शिव आदि देवता की प्रतिमा आपका कहना बिलकुल ठीक नहीं
मालूम होता। दादाजी-सुनिये साहब, आप यहां पर देव शब्द का अर्थ
विद्वान् नहीं कर सकते, क्योंकि "विद्वान्सो वै देवाः” यह "शतपथ ब्राह्मण " का वाक्य है, मगर इसी शतपथ के छुट्टी कण्डिका में “मीनावतार" का विस्तार पूर्वक वर्णन किया है, इसलिये जब श्राप अवतार को मान लियो तो 'मूर्ति-पूजा' को स्वीकार करना अपने आप सिद्ध होगया और दूसरी बात यह है कि यदि यहाँ आप देवता शब्द का अर्थ विद्वान मानेंगे तो प्रातःकाल में ही विद्वान की पूजा करनी चाहिये यह असंगत हो जायगा । यदि किसी
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