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(४६) और 'मूर्ति-पूजा' को सिद्ध करके बतलाता हूँ, खूब
ध्यान देकर सुनियेपुरुष सूक्त का प्रथम मन्त्र है कि"सहस्र शीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपाद् । स भूमि सर्वतः स्मृत्वात्यतिप्ठदशाङ्गुलम् ॥"
(यजुर्वेद) । भावार्थ-उस विराट रूपधारी ईश्वर के अनेक शिर हैं, अनेक पाखें हैं और भनेक पैर हैं। विराट रूपधारी परमेश्वर सभी ओर से पृथिवी को स्पर्श करता हुआ विशेष रूप से दश अंगुल के बीच में रहता है, अर्थात् नाभि से हृदय तक रहता है। और भी सुनों
नमस्ते रुद्र, मन्यव उतोत इषवे नमः। बाहुभ्यामुतते नमः।
, (अजुर्वेद, अध्याय १६, मंत्र ४८) भावार्थ-हे रुद्र ! ( दुष्टों को रुलाने वाले ईश्वर !) आपके क्रोध को और बाण को नमस्कार हो और आपके दोनों भुजाओं को मेरा प्रणाम हो। अब यहां रूद्र रूप ईश्वर के बाहुओं की स्तुति की गई है, और प्रथम मंत्र में विराट रूप ईश्वर के मुख, हाथ, पैर श्रादि का वर्णन है। और भी सुनिये
"या ते रुद्र ! शिवा तनूरघोरापापकाशिनी तया नस्तन्वासन्तमया गिरिशं चाभिचाकशीहि"
(यजु० अध्याय० १६, मंत्र ४६)
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